पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में चुनाव का भारत पर क्या असर होगा?

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इनमें से 33 निर्वाचन क्षेत्र ऐसे हैं, जिनमें कुल पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 28 लाख 17 हज़ार 90 है. इसके अलावा, 12 ऐसे निर्वाचन क्षेत्र बनाए गए हैं, जो कश्मीरी शरणार्थियों का प्रतिनिधित्व करते हैं. इन क्षेत्रो में लगभग 4 लाख मतदाताओं का पंजीकरण किया गया है. इस चुनाव में 13 महिलाओं समेत कुल 724 उम्मीदवारों ने हिस्सा लिया हैं. इनमें से नौ महिलाओं ने विभिन्न पार्टियों की तरफ से और चार महिलाओं ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा है.

इन चुनावों में पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़), पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के अलावा क्षेत्रीय पार्टी ऑल जम्मू-कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ़्रेंस, जमात-ए-इस्लामी और तहरीक-ए-लबैक समेत अन्य पार्टियों ने भी भाग लिया हैं.

लेकिन इस बार पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में चुनाव के दौरान जिस तरह की सियासी गर्मी देखने को मिली है, वह पहले कभी नहीं देखी गई. जबकि 11वीं बार इलाक़े में मतदान हुआ है.

ऐसे में सवाल यही है कि ये चुनाव पाकिस्तान के तीनों प्रमुख राजनीतिक दलों के लिए क्यों महत्वपूर्ण बन गए हैं?

इसकी एक वजह यह भी बताई जाती है कि यह परंपरा रही है, कि केंद्र में सरकार बनाने वाली पार्टी ही यहाँ सरकार बनाती है, क्योंकि यह एक स्वायत्त क्षेत्र नहीं है बल्कि पाकिस्तान प्रशासित है.

क़ायद-ए-आज़म यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर ज़फ़र जसपाल ने बीबीसी को बताया कि चुनाव प्रचार पहले भी होते रहे हैं, लेकिन इस बार बयानबाज़ी और प्रचार दोनों ही काफ़ी सख़्त थे.

“इसका एक कारण पाकिस्तान का मौजूदा राजनीतिक माहौल भी है. पिछले छह महीनों में पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट का गठन और फिर अलग होना, संसद में विपक्ष और सरकार के सदस्यों का टकराव, इन सभी घटनाओं का प्रभाव इस बार के कश्मीर चुनावों में भी दिखाई दिया है.”

अगर हम पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) की बात करें, तो पार्टी की तरफ़ से इस समय कश्मीर में राजनीतिक आंदोलन का नेतृत्व मरियम नवाज़ कर रही है. इससे पहले कश्मीर में पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) की सरकार थी.

इस समय जम्मू-कश्मीर में कई मज़बूत राजनीतिक गुट हैं, जो चुनाव के ज़रिए अपनी राजनीतिक ताक़त दिखाना चाहते हैं.

ज़फ़र जसपाल ने कहा, “इस समय शाहबाज़ शरीफ़ का ग्रुप नज़र नहीं आया है, फिर भी मरियम नवाज़ सबसे आगे हैं. मरियम नवाज़ यह विश्वास दिलाने की कोशिश कर रही हैं कि पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) अब भी राजनीतिक रूप से जिंदा है और अगर पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ को इस क्षेत्र में कोई टक्कर दे सकता है, तो वह विपक्ष पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) के रूप में मौजूद है.”

उन्होंने कहा, “अगर पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) किसी तरह कश्मीर में अपनी सरकार बचाने में कामयाब हो जाती है, तो यह 2023 के चुनावों की तरफ़ उनका पहला क़दम होगा.”

जब पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) के बारे में राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि इससे पहले भी यह देखा गया है कि ये पार्टी सियालकोट की सीट पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ (पीएमएल-एन) से और कराची में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) से कुछ सीटें हार गई थी.

ज़फ़र जसपाल ने बताया, ”इन घटनाओं को देखते हुए एक नज़रिया बना कि पीटीआई शायद ये चुनाव न जीत पाए. इसलिए फ़िलहाल सत्तारूढ़ पार्टी होने के नाते पीटीआई की पहली इच्छा चुनाव जीतना है.”

जानकारों का कहना है कि जहाँ इस पूरे मामले में अन्य दो दल अपने स्टैंड पर क़ायम है, वहीं पीपीपी अपने ऊपर लगे इस टैग को हटाना चाहती है कि पीपीपी की राजनीति सिर्फ़ सिंध प्रांत तक सीमित है.

ज़फ़र जसपाल ने कहा कि पीपीपी को केवल सिंध की पार्टी कहना ग़लत होगा. “पीपीपी एक राष्ट्रीय पार्टी है, जो पिछले 50 वर्षों से राजनीति में है. पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में उनकी सरकार बनती रही है. फ़िलहाल उनके सामने यह चुनौती ज़रूर है, जिसे वे पीछे छोड़ना चाहते हैं और कश्मीर में अपनी पार्टी की अहमियत को बरक़रार रखना चाहते हैं.”