संयुक्त किसान मोर्चा इस दिन को ‘खेती बचाओ, लोकतंत्र बचाओं दिवस’ के तौर पर मना रहा है

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आपातकाल की 46वीं वर्षगांठ के मौक़े पर तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ सात माह से आंदोलन कर रहे किसानों ने राजभवनों का घेराव करने, ट्रैक्टर रैलियां निकालने और धरना-प्रदर्शन का ऐलान किया है। उत्तर प्रदेश में सहारनपुर से चलकर ग़ाज़ीपुर बॉर्डर तक के लिए बड़ी संख्या में किसानों के जत्थे गुरुवार को ही रवाना हो गए थे।  कुछ प्रदेश के दूसरे शहरों, गांवों और क़स्बों की तरफ़ से ग़ाज़ीपुर दिल्ली सीमा की ओर बढ़ रहे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा है कि सात महीने से किसान सड़कों पर हैं लेकिन सरकार उनकी बात नहीं मान रही है इसलिए देश में आपातकाल की 46वीं वर्षगांठ पर किसानों ने प्रदर्शन में और तेज़ी लाने का फ़ैसला किया है। 

गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा, “केंद्र सरकार अभी भी नहीं जागी तो आगामी यूपी और उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में बीजेपी को इसका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ेगा।  बीजेपी सरकार ने तीनों कृषि क़ानून रद्द नहीं किए तो पश्चिम बंगाल की तरह यूपी और उत्तराखंड के चुनावों में भी किसान संगठन बीजेपी को हराने के लिए अपील करेंगे।  यह आंदोलन केवल किसानों का नहीं है, बल्कि देश के हर नागरिक, व्यापारी वर्ग और म़जदूरों का भी है। “

इसी साल 26 जनवरी को राजधानी दिल्ली में हुई किसानों की ट्रैक्टर रैली और उसके बाद लाल क़िले पर हुए हंगामे की वजह से किसान आंदोलन को एक झटका तो लगा था लेकिन दो दिन बाद ही ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत के साथ पुलिस की कथित बदसलूकी और फिर उनके आह्वान के बाद आंदोलन में फिर से गर्मी आ गई थी।