सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मदन भीमराव लोकुर और कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ज्योतिर्मय भट्टाचार्य इस जांच आयोग के सदस्य हैं और उन्हें अपनी रिपोर्ट पेश करने के लिए छह महीने का समय दिया गया है.
पश्चिम बंगाल सरकार के अनुसार राज्य में रहने वाले व्यक्तियों के मोबाइल फ़ोन की कथित अवैध हैकिंग, निगरानी, ट्रैकिंग और रिकॉर्डिंग से संबंधित मामले को लेकर जाँच आयोग अधिनियम 1952 की धारा 3 के तहत यह फ़ैसला किया है.
ममता का मोदी सरकार पर निशाना
पेगासस स्पाईवेयर विवाद में ये कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी और चुनावों के दौरान बैनर्जी के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर स्पाईवेयर के निशाने पर थे. इस मामले में ममता पहले ही मोदी सरकार पर एक “सर्विलांस स्टेट स्थापित करने की कोशिश” करने का आरोप लगा चुकी हैं. इसे जनहित का मामला बताते हुए अब पश्चिम बंगाल सरकार ने कहा है कि वह रिपोर्ट की गई इंटरसेप्शन की विश्वसनीय रूप से जांच करने के लिए एक स्वतंत्र सार्वजनिक जाँच करा रही है.
पश्चिम बंगाल सरकार ने इस जांच को शुरू करने की एक वजह यह भी दी है कि इस मामले की जांच के लिए केंद्र सरकार ने कोई पहल नहीं की है.
ममता बनर्जी सरकार का कहना है कि अगर इंटरसेप्शन के आरोप सही पाए जाते हैं तो इसका सीधा असर राज्य की पुलिस और सार्वजानिक व्यवस्था पर पड़ता है और यह दोनों ही विषय भारत के संविधान की अनुसूची 7 के तहत राज्य सरकार के कामकाज के दायरे में आते हैं.
साथ ही, राज्य सरकार ने कहा है कि इस मामले का राज्य सरकार और पश्चिम बंगाल विधानसभा के सदस्यों की शक्तियों और विशेषाधिकारों पर भी असर पड़ता है और ये दोनों विषय राज्य के कामकाज की सूची के अंतर्गत आते हैं. पश्चिम बंगाल सरकार ने ये भी कहा है कि यह मामला आपराधिक क़ानून से भी संबंधित है जो समवर्ती सूची का विषय है.
जाँच आयोग का दायरा क्या होगा?
पश्चिम बंगाल सरकार ने जो आयोग बनाया है उसका मुख्य काम ये पता लगाना होगा कि क्या रिपोर्ट किए गए इंटरसेप्शन की कोई घटना हुई है. साथ ही, आयोग उन सरकारी और ग़ैर-सरकारी लोगों से पूछताछ करेगा जो इस तरह के कथित इंटरसेप्शन में शामिल थे. आयोग उस तंत्र, स्पाईवेयर या मैलवेयर की जाँच भी करेगा जिनका उपयोग इस तरह के इंटरसेप्शन के लिए किया जा रहा था.
आयोग यह भी पता लगाएगा कि क्या इसराइल में एनएसओ ग्रुप के पेगासस या किसी अन्य संगठन के किसी स्पाईवेयर या मैलवेयर का उपयोग इंटरसेप्शन के लिए किया गया था या किया जा रहा है.
इस जांच आयोग के एक और मुख्य काम उन परिस्थितियों की जांच करना होगा जिनमें किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों के कहने पर यह कार्रवाई की गई.
जाँच आयोग पीड़ितों और प्रभावित व्यक्तियों के विवरण की जांच करेगा और ये पता लगाएगा कि क्या लोगों की निजता का अधिकार प्रभावित हुआ है. इस मामले से जुड़े किसी अन्य मामले या तथ्यों की जाँच करने का काम भी आयोग को दिया गया है.
क्या ममता ने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया?
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एके गांगुली कहते हैं कि चूँकि ये इंटरसेप्शन का मामला पूरी तरह से केंद्रीय सूची के अंतर्गत आता है इसलिए राज्य सरकार आयोग का गठन नहीं कर सकती है और ऐसा करके राज्य सरकार ने अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया है.
वे कहते हैं कि ये आयोग जांच आयोग अधिनियम, 1952 की धारा 3 के तहत स्थापित किया गया है और धारा 3 “उपयुक्त सरकार” की बात करती है. अधिनियम की धारा 2 (ए) के तहत परिभाषित किया गया है कि एक उपयुक्त सरकार क्या है.
जाँच आयोग अधिनियम, 1952 की धारा 2 (ए) के अनुसार संविधान की सातवीं अनुसूची में सूची 1, 2 या 3 में सूचीबद्ध किसी भी मामले की जाँच करने के लिए केंद्र सरकार ही “उपयुक्त सरकार” है.
इसी तरह राज्य सरकार उस सूरत में “उपयुक्त सरकार” है अगर जाँच का विषय संविधान की सातवीं अनुसूची में सूची 2 या 3 में सूचीबद्ध है.
संविधान की सातवीं अनुसूची में सूची 1 के विषयों पर केंद्र सरकार और सूची 2 के विषयों पर राज्य सरकारें फ़ैसले ले सकती हैं. सूची 3 कॉन्करेंट या समवर्ती सूची है जिस पर केंद्र और राज्य सरकारें दोनों फ़ैसले ले सकती हैं.
जस्टिस गांगुली कहते हैं, “इंटरसेप्शन का अर्थ है संचार प्रणालियों में अवरोधन. पोस्ट और टेलीग्राफ़, टेलीफ़ोन, वायरलेस, प्रसारण और संचार के अन्य साधन केंद्र सरकार के कामकाज के दायरे में आते हैं. यह राज्य सरकार के दायरे से बाहर है.”
जस्टिस गांगुली कहते हैं, “ये मामला दूरसंचार क़ानून से संबंधित है और दूरसंचार को न तो राज्य सूची में शामिल किया गया है और न ही समवर्ती सूची में.”
वे कहते हैं, “मान लीजिए, किसी रक्षा सौदे में घोटाला हुआ है तो क्या राज्य सरकार इसकी जांच कर सकती है? नहीं, क्योंकि यह रक्षा से संबंधित है जो केंद्र सरकार का विषय है. लेकिन मान लीजिए कि राशन सामग्री की खरीद में घोटाला हुआ है तो राज्य सरकार जांच कर सकती है क्योंकि ये विषय राज्य सूची से संबंधित है.”
जस्टिस गांगुली कहते हैं, “उपयुक्त सरकार आयोग के विषय-वस्तु से संबंधित है. यदि आप उपयुक्त सरकार नहीं हैं, तो इसका मतलब है कि आपके पास अधिनियम के तहत अधिकार नहीं हैं.”
‘अधिकार क्षेत्र का कोई मुद्दा ही नहीं है’
वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील विकास सिंह का कहना है कि उन्हें नहीं लगता कि राज्य सरकार ने अपने अधिकार क्षेत्र को बिल्कुल भी पार किया है.
सिंह कहते हैं, “ये ऐसे मुद्दे हैं जो राज्य की सार्वजनिक व्यवस्था से संबंधित हैं. निजता के अधिकार से संबंधित बातें भी राज्य का विषय हैं. तो इस लिहाज़ से जहाँ तक राज्य के लोगों का सवाल है, यह विशुद्ध रूप से राज्य का विषय है.”
वे कहते हैं कि अगर इस जांच के दौरान इस जांच आयोग को कुछ ऐसी चीज़ों का पता चलता है जो कहीं और भी हुई हैं या उन्हें कुछ अन्य लोगों की जासूसी के बारे में पता चलता है तो इस जांच आयोग की रिपोर्ट आने के बाद राज्य सरकार को उस रिपोर्ट को संबंधित सरकार उनके स्तर पर उचित कार्रवाई करने के लिए भेजने का अधिकार होगा.
सिंह कहते हैं कि उनके अनुसार इस मामले में अधिकार क्षेत्र या जूरिस्डिक्शन का कोई मुद्दा ही नहीं है. उनके अनुसार ये देखना भी ज़रूरी है कि ऐसा करने के पीछे उसकी मंशा क्या है.
वे कहते हैं, “केंद्र सरकार ने सोचा नहीं था कि कोई राज्य सरकार इस तरह का कदम उठा लेगी. केंद्र इस तरह का आयोग बना सकता था और अगर उन्होंने ऐसा किया होता तो राज्य को ऐसा करने का अधिकार नहीं होता. केंद्र को इस मामले की जांच में कोई दिलचस्पी नहीं है. चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया है इसलिए सुप्रीम कोर्ट को इस आयोग को सशक्त बनाना चाहिए और अधिकार क्षेत्र के मुद्दे पर विराम लगाना चाहिए.”
विकास सिंह का यह भी मानना है कि सुप्रीम कोर्ट को इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लेना चाहिए क्योंकि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने ही तय किया है. वे कहते हैं, “यह एक बहुत ही गंभीर मामला है और इसके बहुत गंभीर परिणाम हो सकते हैं.”
क्या कहता है संविधान?
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं, “मुझे लगता है कि टर्म्स ऑफ़ रेफ़रेंस बहुत व्यापक हैं और राज्य के बाहर की घटनाओं को कवर करती हैं. इस बात पर शक़ है कि क्या इसे वैध माना जाएगा.”
कश्यप कहते हैं कि यह आयोग पश्चिम बंगाल के नागरिकों पर प्रभाव की जांच कर तो सकता है, लेकिन अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जांच या पूछताछ करने का हक़ उसे नहीं है. मसलन, अगर यह आयोग अपनी जाँच के दौरान भारत के गृह मंत्री से पूछताछ करना चाहे तो कश्यप के अनुसार “ऐसा करने का हक़ उसे नहीं होगा”.
क्या इस आयोग को केंद्र सरकार क़ानूनी चुनौती दे सकती है? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, “हाँ, कोई यह कहकर अदालत जा सकता है कि यह अधिकार क्षेत्र से बाहर की बात है. यह तर्क दिया जा सकता है कि वे अपने राज्य की क्षेत्रीय सीमा से बाहर जा रहे हैं. अदालत तब वैधता की जाँच करेगी और देखेगी कि क्या कुछ सीमाएं पार की जा रही हैं.”
कश्यप के अनुसार इस मामले में पश्चिम बंगाल सरकार राज्य के अधिकार क्षेत्र की सीमा से परे जाती दिख रही है. वे कहते हैं, “न्यायालय वैधता और अधिकार क्षेत्र की सीमा के प्रश्न की जांच कर सकती है.”