पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य को पद्म पुरस्कार दिए जाने को लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू है। उनकी पार्टी माकपा ने दावा किया था कि बुद्धदेव भट्टाचार्य ने पुरस्कार लेने से मना किया है। हालांकि विश्वस्त सूत्रों ने दावा किया है कि माकपा का बयान फर्जी था और बुद्धदेव ने सम्मान लेने से इनकार करने संबंधी वह बयान नहीं दिया था जो पार्टी की ओर से जारी किया गया। तो क्या माकपा ने बुद्धदेव के नाम पर फर्जी बयान बनाकर मीडिया में जारी की? कई विशेषज्ञ ऐसे ही दावे कर रहे हैं। दरअसल गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कार पाने वालों में बुद्धदेव भट्टाचार्य का नाम था। उनकी पार्टी की ओर से उनके नाम पर एक बयान जारी किया गया जिसमें उन्होंने कथित तौर पर कहा था, “मैं पद्म भूषण पुरस्कार के बारे में कुछ नहीं जानता, किसी ने मुझे इसके बारे में नहीं बताया। अगर मुझे पद्म भूषण पुरस्कार दिया गया तो मैं इसे अस्वीकार कर दूंगा।”
‘बुद्धदेव भट्टाचार्य का बयान’ शीर्षक के तहत यह छोटा सा खंडन महत्वपूर्ण सवाल खड़े करता है। क्योंकि, मामला प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) तक पहुंच चुका है। धीरे-धीरे यह स्पष्ट हो गया कि दिल्ली से कोलकाता के कड़या स्ट्रीट स्थित बुद्धदेव के घर केंद्र सरकार की ओर से फोन किया गया था जिसमें उन्हें पद्म पुरस्कार देने के बारे में जानकारी दी गई थी। ऐसा नियम रहता है कि जिन्हें पुरस्कार दिया जाता है उनकी सहमति लेकर ही नाम की घोषणा होती है।
इस बार झाड़ग्राम के कालीपाद सोरेन को पश्चिम बंगाल से पद्म पुरस्कार मिला है। उन्होंने कहा, ”हां, मुझे 25 जनवरी को दिल्ली से फोन आया था। मैंने अपनी सहमति दी थी ।
एक अन्य पद्म पुरस्कार विजेता राशिद खान ने कहा कि पुरस्कार की घोषणा से पहले उनकी सहमति मांगी गई थी।
तो बुद्धदेव का नाम उनकी सहमति के बिना मान्यता घोषित करना बिल्कुल भी विश्वसनीय है? और अगर फोन किया गया तो फिर बुद्धदेव भट्टाचार्य के इस बयान पर भी सवाल उठते हैं जिसमें उन्होंने कहा है, “मैं पद्म भूषण पुरस्कार के बारे में कुछ नहीं जानता, किसी ने मुझे इसके बारे में कुछ नहीं बताया।”
हालांकि यह बयान सीधे तौर पर बुद्धदेव भट्टाचार्य ने कहीं नहीं दिया था और पार्टी की ओर से जारी किया गया है इसलिए इसकी असलियत पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
राज्यसभा सांसद और अखिल भारतीय अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष बिकास रंजन भट्टाचार्य कहते हैं, ”मैंने खुद इस बारे में मीरा दी (बुद्धदेव की पत्नी) से बात की है। एक फोन आया था। मीरा दी ने उठाया था। कॉल करने वाले ने केंद्र के एक अधिकारी के रूप में अपना परिचय दिया और बुद्धदेव को पद्म भूषण की पेशकश की। लेकिन मीरा दी ने फोन पर ध्यान नहीं दिया। शायद इसलिए उन्होंने बुद्धदेव को नहीं बताया। तो बुद्धदेव ने कहा, ‘मुझे इस बारे में किसी ने कुछ नहीं बताया। गलती कहाँ है?” वाममोर्चा घटक दल में शामिल भाकपा के राज्य सचिव स्वपन बंद्योपाध्याय ने कहा, “क्या दिल्ली से बुद्धदेव को सूचना दी गई थी? उनकी निजी राय नहीं ली जाएगी? मीरा देवी को सूचित किया जाना चाहिए? क्या वह बुद्धदेव की राजनीतिक एजेंट हैं? तो माकपा के बयान की अनैतिकता क्या है?”
सीपीएम के पूर्व नेता और पार्टी ऑफ डेमोक्रेटिक सोशलिज्म (पीडीएफ) के संस्थापक समीर पुतटुंड ने कहा, “मुझे लगता है कि बुद्धदेव ने राजनीतिक रूप से पद्म भूषण को अस्वीकार करने का फैसला सही किया है। लेकिन जब उनके घर फोन आया तो वे अपनी जिम्मेदारी से कैसे इनकार कर सकते थे? हो सकता है कि उन्होंने खुद दिल्ली प्रतिनिधि से बात नहीं की हो। क्या दिल्ली को पहले से सूचित किया गया था कि वह पुरस्कार स्वीकार नहीं करेंगे? पार्टी की ओर ले जारी अस्वीकृति के बयान में, “मैं पद्म भूषण पुरस्कार के बारे में कुछ नहीं जानता, किसी ने मुझे इसके बारे में कुछ नहीं बताया” – ऐसा इनकार अनुचित है।” कांग्रेस के पूर्व नेता प्रतिपक्ष अब्दुल मन्नान इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते थे। इसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘मैंने वह फोन कॉल नहीं देखा। मैं इस बहस में नहीं पड़ना चाहता।
” इस बारे में सीपीएम नेता सुजन चक्रवर्ती से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ”मुझे कुछ नहीं पता।”
वामपंथी नेता और यूटीयूसी के महासचिव अशोक घोष कहते हैं, ”बुद्धदेव जैसे सम्मानित नेता की ओर से इनकार का पत्र सटीक जानकारी के आधार पर अधिक सावधानी से लिखा जाना चाहिए था।” वहीं, तथागत राय ने इस संबंध में कहा, ”मैं राज्यपाल (पूर्व) होने के कारण इस प्रकार के पुरस्कार की प्रक्रिया से परिचित हूं। इसके बारे में प्राप्तकर्ता को हमेशा पहले से सूचित किया जाता है। वास्तव में बुद्धदेव के इनकार वाला बयान बनावटी और साम्यवादी पाखंड है।”
पिछले साल वामपंथी नेता, डॉक्टर और सामाजिक कार्यकर्ता अरुणोदय मंडल अपने परिवार के साथ पद्मश्री लेने दिल्ली गए थे। उन्होंने कहा, “बुद्धदेव के बयान के नाम पर क्या प्रकाशित किया गया है? मुझे यह कहते हुए बहुत शर्म और दुख हो रहा है कि पूरे मामले का राजनीतिकरण किया जा रहा है। यह पुरस्कार बिना अनुमति के या किसी को पहले से बताकर प्राप्तकर्ता की सहमति लिए बगैर नहीं दिया जाता है। भाजपा ने पुरस्कार नहीं दिया। प्रमाण पत्र पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होते हैं। जो हो रहा है उसमें उनका अपमान किया जा रहा है।”