योगी आदित्यनाथ: छात्र नेता अजय से ‘मुख्यमंत्री-महाराज’ बनने का दिलचस्प सफ़र

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The Uttar Pradesh Chief Minister, Shri Yogi Adityanath meeting the President, Shri Ram Nath Kovind, at Rashtrapati Bhavan, in New Delhi on February 10, 2018.

ट्विटर के उनके आधिकारिक अकाउंट में उनका परिचय कुछ इस तरह लिखा गया है – ‘मुख्यमंत्री (उत्तर प्रदेश); गोरक्षपीठाधीश्वर, श्री गोरक्षपीठ; सदस्य, विधान परिषद, उत्तर प्रदेश; पूर्व सांसद (लोकसभा-लगातार 5 बार) गोरखपुर, उत्तर प्रदेश.’ भारत के इतिहास में शायद ही कभी ऐसा हुआ हो जब एक जन-प्रतिनिधि संवैधानिक पद पर रहते हुए न सिर्फ़ अपनी धार्मिक गद्दी पर भी विराजमान हो, बल्कि राजकाज में भी उसकी गहरी छाया दिखती हो.

महंत आदित्यनाथ योगी जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो धार्मिक के साथ-साथ राजनीतिक सत्ता भी उनके हाथ आई, इसी बात को हमेशा ज़ाहिर करने के लिए ‘मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज’ का संबोधन चुना गया. मुख्यमंत्री और महाराज का ये मिला-जुला नाम, सिर्फ संबोधन नहीं है, यह उनके धार्मिक-राजनीतिक सफ़र की ताक़त, ख़ासियत और कुछ लोगों की नज़रों में ख़ामी भी है.

साल 2017 में उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर प्रेस क्लब ने उन्हें न्योता दिया. गोरखपुर में वरिष्ठ पत्रकार मनोज सिंह याद करते हैं, “जैसे ही मुख्यमंत्री सभा में दाखिल हुए, संचालन कर रहे पत्रकार अपनी बात रोककर बोले – देखिए, हमारे मुख्यमंत्री आ गए, हमारे भगवान आ गए.”

“इसके बाद मुख्यमंत्री मंच पर जाकर बैठ गए और वहां मौजूद सभी पत्रकार उनका स्वागत करने के लिए एक-एक कर मंच पर गए और उनके पैर छुए.” पैर छूकर बड़ों या आदरणीय का आशीर्वाद लेना उत्तर प्रदेश में आम है, लेकिन उस क्षण में पैर महंत के छुए जा रहे थे या मुख्यमंत्री के, यह कहना मुश्किल है. मनोज सिंह पूछते हैं, “पत्रकार पैर छुएगा, तो पत्रकारिता कैसे करेगा?” योगी आदित्यनाथ की दोनों पहचानों को अलग करना इसलिए भी मुश्किल है कि वो ख़ुद उन्हें साथ लेकर चलते हैं.

सरकारी दस्तावेज़ों में उनके नाम के साथ महंत या महाराज नहीं लगाया जाता पर मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद भी गेरुआ वस्त्र पहनने से उनकी वही छवि दिखती है.

लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस बताते हैं, “वो सत्ता में हैं तो लोग वही करते हैं जो उन्हें पसंद है, उनकी कुर्सी के पीछे सफ़ेद की जगह गेरुआ तौलिया टंगा रहता है, शौचालय का उद्घाटन करने भी जाएं तो दीवार को गेरुए रंग से रंग दिया जाता है.”

महीने में एक या दो बार वो गोरखपुर जाते हैं और मंदिर में पूजा-अर्चना, धार्मिक परंपराओं और त्योहारों का हिस्सा बनते हैं. सभी धार्मिक गतिविधियों की तस्वीरें उनके सरकारी सोशल मीडिया हैंडलों से बराबर शेयर की जाती हैं.

धर्म वहाँ हर जगह बसा है. पुलिस थानों में छोटे मंदिर बने हैं. गोरखपुर की ज़िला अदालत में हर मंगलवार वकील हनुमान चालीसा पढ़ते हैं.