पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र में अपने संबोधन में अफ़ग़ानिस्तान के मौजूदा हालात, तालिबान सरकार, अमेरिका के रवैये, भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर और इस्लामोफ़ोबिया जैसे कई मुद्दों पर अपनी बात रखी. इमरान ख़ान ने अपने संबोधन में भारत पर जमकर निशान साधा.
उन्होंने भारत पर जम्मू-कश्मीर में अवैध क़दम उठाने का आरोप लगाते हुए कहा कि भारत ने पाँच अगस्त 2019 के बाद से जम्मू और कश्मीर में कई अवैध और एकतरफ़ा क़दम उठाए हैं.
Prime Minister @ImranKhanPTI will virtually address the 76th session of the #UNGA shortly.
— PTI (@PTIofficial) September 24, 2021
You can watch the speech live on this link: https://t.co/gycFQljEhI#PMImranKhanAtUNGA
इमरान ख़ान ने आरोप लगाते हुए कहा-
- 900000 सशस्त्र बलों की तैनाती की गई.
- वरिष्ठ कश्मीरी नेताओं को नज़रबंद कर दिया गया.
- मीडिया और इंटरनेट पर रोक लगा दी गई.
- शांतिपूर्ण विरोध को हिंसक रूप से दबा दिया गया.
- 13000 युवा कश्मीरियों का अपहरण हुआ और सैकड़ों को प्रताड़ित किया गया.
- फ़र्ज़ी “मुठभेड़” में सैकड़ों निर्दोष कश्मीरियों को मार डाला गया.
- पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने भारत प्रशासित जम्मू और कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों पर मानवाधिकार उल्लंघन का भी आरोप लगाया. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि पाकिस्तान बार-बार दुनिया को इस बारे में सूचित करता आया है.
इमरान ख़ान ने कहा, ”भारत अपने फ़ैसलों और कार्रवाई से जम्मू-कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का उल्लंघन कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि विवादित इलाक़े का समाधान यूएन की निगरानी में निष्पक्ष जनमत संग्रह से होगा. भारत कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार नियमों का भी उल्लंघन कर रहा है. मुझे खेद है कि कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर दुनिया का रुख़ भेदभावपूर्ण है.”
उन्होंने कहा, “कश्मीर में भारत की कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों और मानवीय कानूनों का उल्लंघन करती है, जिसमें चौथा जेनेवा कन्वेंशन भी शामिल है और यह युद्ध अपराध और मानवता के ख़िलाफ़ अपराध है.”
उन्होंने दुख जताया कि मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए दुनिया का दृष्टिकोण चयनात्मक है. उन्होंने कहा, “भू-राजनीतिक विचार, कॉर्पोरेट हित, वाणिज्यिक लाभ अक्सर अपने संबंधित देशों के अपराधों की अनदेखी करने के लिए मजबूर करते हैं.”
उन्होंने कहा कि इस तरह का “दोहरा मानदंड” भारत के संदर्भ में सबसे अधिक स्पष्ट हैं. प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कश्मीरी नेता सैयद अली शाह गिलानी की मौत का मुद्दा भी उठाया.
उन्होंने कहा कि वरिष्ठ कश्मीरी नेता के पार्थिव शरीर को उनके परिवार से जबरन छीना गया और उन्हें उनकी इच्छा और मुस्लिम परंपराओं के अनुसार दफ़नाने से रोक दिया गया, जो कि भारतीय बर्रबरता का सबसे हालिया उदाहण है.
उन्होंने कहा, “किसी भी कानून या नैतिक मंज़ूरी से इतर यह कार्रवाई बुनियादी मानदंडों के ख़िलाफ़ थी. मैं इस महासभा से मांग करता हूँ कि सैयद गिलानी के शव को इस्लामी संस्कार के साथ दफ़नाने की अनुमति दी जाए.”
अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के लिए एकमात्र विकल्प- स्थिर और मज़बूत तालिबान सरकार
संयुक्त राष्ट्र में इमरान ख़ान ने अफ़ग़ानिस्तान के हालात और तालिबान सरकार पर भी अपनी बात रखी.
अपने संबोधन में पीएम इमरान ख़ान ने कहा कि दुनिया को यह समझने की ज़रूरत है कि जब अफ़ग़ानिस्तान की बात है तो ऐसे में एकमात्र रास्ता यही है कि वहाँ की सरकार स्थिर हो और मज़बूत हो.
उन्होंने कहा यह “अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के लिए एकमात्र अनिवार्य विकल्प है.”
अपने संबोधन में उन्होंने कहा, “अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह सोचना चाहिए कि आगे क्या रास्ता चुनना है. अगर हम अभी अफ़ग़ानिस्तान की उपेक्षा करते हैं, तो संयुक्त राष्ट्र के अनुसार अफ़ग़ानिस्तान जो पहले से ही बुरे हालात से जूझ रहा है, वहाँ अगले साल तक लगभग 90% लोग ग़रीबी रेखा से नीचे आ जाएंगे.”
उन्होंने कहा, “एक बड़ा मानवीय संकट मंडरा रहा है और इसका असर न केवल अफ़ग़ानिस्तान के पड़ोसी देशों पर पड़ेगा बल्कि पूरी दुनिया इससे प्रभावित होगी.”
प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि अगर वहाँ एक स्थिर और मज़बूत सरकार नहीं रहती है तो एक अस्थिर, अराजक अफ़ग़ानिस्तान फिर से अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह बन जाएगा.
उन्होंने कहा कि ऐसे में अफ़ग़ानिस्तान के लोगों की ख़ातिर एक ही रास्ता बचता है कि वर्तमान सरकार को मज़बूत और स्थिर करना चाहिए.
‘तालिबान को प्रोत्साहन’ देने की अपील
प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने अपनी मीडिया ब्रीफिंग में तालिबान के वादों का संक्षिप्त विवरण भी दिया.
उन्होंने कहा कि उन्होंने मानवाधिकारों का सम्मान करने, एक समावेशी सरकार बनाने, अपनी धरती को आतंकवादियों को इस्तेमाल नहीं करने देने का वादा किया है.
इमरान ख़ान ने कहा, “अगर विश्व समुदाय उन्हें प्रोत्साहित करता है तो यह एक बड़ी जीत होगी. क्योंकि ये वो चार शर्तें हैं जो दोहा में यूएस-तालिबान वार्ता के दौरान हुई थीं.
प्रधानमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अफ़ग़ानिस्तान एक “गंभीर” मोड़ पर है.
उन्होंने कहा, “हम समय बर्बाद नहीं कर सकते क्योंकि वहाँ मदद की ज़रूरत है. वहाँ तुरंत मानवीय सहायता दी जानी चाहिए. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने साहसिक क़दम उठाए हैं. मैं अंतरराष्ट्रीय समुदाय से संगठित होकर इस दिशा में आगे बढ़ने का आग्रह करता हूं.”
इस्लामोफ़ोबिया पर भी बोले इमरान ख़ान
प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने इस्लामोफ़ोबिया पर भी चर्चा की. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र वैश्विक आतंकवाद विरोधी रणनीति ने इसे एक उभरते ख़तरे के रूप में बताया है. यह मुसलमानों को टारगेट करने के लिए दक्षिणपंथी, ज़ेनोफोबिक और हिंसक राष्ट्रवादियों की प्रवृत्ति को बढ़ाता है.
उन्होंने कहा, “मैं महासचिव से इस्लामोफ़ोबिया के बढ़ते मामलों का मुक़ाबला करने के लिए एक वैश्विक वार्ता बुलाने का आह्वान करता हूँ. हमारे प्रयास, एक ही समय में, अंतर-धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए होने चाहिए.”
इमरान ख़ान ने इस्लामोफ़ोबिया के संदर्भ में विशेष रूप से भारत का ज़िक्र किया.
उन्होंने कहा, “फासीवादी आरएसएस-भाजपा शासन की नफ़रत से भरी ‘हिंदुत्व’ विचारधारा ने भारत के 20 करोड़ के मुस्लिम समुदाय के खिलाफ़ डर और हिंसा का माहौल तैयार कर दिया है.”
अमेरिका पर लगाए कृतघ्नता के आरोप
प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने अपने संबोधन में एक ओर जहाँ जमकर भारत पर निशान साधा वहीं ख़ुद को अमेरिकी कृतघ्नता का शिकार भी बताया.
अपने संबोधन में उन्होंने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ दोहरा मानदंड अपनाने का भी आरोप लगाया.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कहा, “अफ़ग़ानिस्तान में मौजूदा स्थिति के लिए कुछ अमेरिकी राजनेताओं और कुछ यूरोपीय राजनेताओं ने पाकिस्तान को दोषी ठहराया. इस मंच से मैं चाहता हूँ कि उन सभी को पता चले कि इन परिस्थितियों की वजह से अफ़ग़ानिस्तान के अलावा, जिस देश को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ, वह पाकिस्तान था; जब वह 9/11 हमले के बाद अमेरिकी युद्ध का हिस्सा बना.
इमरान ख़ान ने कहा कि अमेरिका का साथ देने के बदले 80,000 पाकिस्तानियों की जान चली गई. यह देश में आंतरिक संघर्ष और असंतोष का कारण बना जबकि अमेरिका ने ड्रोन हमले किए.
“तो अब जब हम सुनते हैं कि अमेरिका दुभाषियों और अमेरिका की मदद करने वाले सभी लोगों की देखभाल करने को लेकर इच्छुक और चिंतित है तो हम सोचते हैं कि हमारे बारे में क्या?”
इमरान ख़ान ने कहा, इस साथ के बदले प्रशंसा की बजाय पाकिस्तान को सिर्फ़ दोष दिया गया.
इमरान ख़ान ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में एक तबक़ा ऐसा है जो अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के उभारक के लिए पाकिस्तान को दोषी ठहराता है.
अगस्त में संयुक्त राष्ट्र ने भी अफ़ग़ानिस्तान पर एक विशेष बैठक में अपना पक्ष रखने के पाकिस्तान के अनुरोध को ख़ारिज कर दिया था. इससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय का संदेह स्पष्ट हो गया था.
भारत की कड़ी प्रतिक्रिया
संयुक्त राष्ट्र महासभा में राइट टू रीप्लाई के तहत पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के संबोधन का जवाब देते हुए कहा कि पाकिस्तान खुले तौर पर आतंकवादियों का समर्थन करता है. भारत ने कहा कि यह विश्व स्तर पर ज्ञात है कि पाकिस्तान आतंकवादियों को हथियार देता है.
संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत की प्रथम सचिव स्नेहा दुबे ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के बयान पर कड़ा विरोध जताया. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने भारत के आंतरिक मामलों को दुनिया के मंच पर लाने और झूठ फैलाकर छवि ख़राब करने की कोशिश की है. उनके इस प्रयास पर हमने अपने राइट टू रिप्लाई का इस्तेमाल किया है.
अपने जबाव में भारत ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंधित सूची के ज़्यादातर आतंकवादियों को शरण देने या उनकी मेज़बानी करने का अपमानजनक रिकॉर्ड भी पाकिस्तान के खाते में ही है. ओसामा बिन-लादेन को पाकिस्तान ने शरण दे रखी थी. यहाँ तक आज भी पाकिस्तान ओसामा को शहीद बताता है.”
”पाकिस्तान आतंकवादियों का पालन-पोषण करता है. हम सुनते रहे हैं कि पाकिस्तान ख़ुद आतंकवाद का शिकार है. दरअसल, पाकिस्तान एक ऐसा देश है जो अग्निशामक बनकर आग लगाता है. पाकिस्तान के लिए बहुलतावाद समझना बहुत मुश्किल है क्योंकि यहाँ अल्पसंख्यकों के लिए शीर्ष तक पहुँचने पर पाबंदी है. पूरा जम्मू-कश्मीर और लद्दाख भारत का अभिन्न हिस्सा है और हमेशा रहेगा.”