आयकर विभाग ने शुक्रवार को बताया कि 21 दिसंबर को बड़े पैमाने पर की गई जांच में उसने पाया है कि चीनी मोबाइल फ़ोन बनाने वाली दो कंपनियों में कई अनियमितताएं हैं. अंग्रेज़ी अख़बार ‘द हिंदू’ लिखता है कि इस मामले में विदेश से नियंत्रित कई मोबाइल संचार और मोबाइल फ़ोन निर्माता कंपनियां और उनकी इकाइयां शामिल हैं.
यह जांच तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, असम, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार, राजस्थान और दिल्ली और इसके आसपास के शहरों में की गई.
आयकर विभाग का कहना है, “जांच में पता चला है कि इन दो बड़ी कंपनियों ने विदेश में स्थित अपनी ग्रुप कंपनियों को रॉयल्टी के रूप में जो रक़म भेजी वो कुल मिलाकर 5500 करोड़ रुपये से अधिक है. उसके लिए जिन ख़र्चों का दावा किया गया है, वो सबूतों और तथ्यों की रोशनी में उचित नहीं लग रहे हैं.” 26 दिसंबर को इस मामले में चीनी चेंबर्स ऑफ़ कॉमर्स ने भारत से कहा था कि वह अनियमित टैक्स जाँच में बदलाव करे. चीनी चेंबर्स ऑफ और इंडिया चाइना मोबाइल फ़ोन इंटरप्राइज असोसिएशन ने भारत सरकार से कहा था कि चीनी कंपनियों के लिए भारत में भेदभाव रहित कारोबारी माहौल होना चाहिए.
चीनी चेंबर्स ऑफ और इंडिया चाइना मोबाइल फ़ोन इंटरप्राइज असोसिएशन के लिखे पत्र को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का मुखपत्र माने-जाने वाला अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने ट्वीट किया था.
इस पत्र में लिखा गया था, ”हाल ही में चीनी मोबाइल फ़ोन कंपनियों को भारत में अप्रत्याशित मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. कुछ कंपनियों को अचानक भारत सरकार से जुड़ी एजेंसियों की जाँच का सामना करना पड़ा है. इसका नतीजा यह हुआ कि कंपनिया अपना उत्पादन सामान्य करने में असमर्थ हैं. विकाशील भारत में हमारा भरोसा कमज़ोर हुआ है. ऐसा करने से भारत में निवेश पर बुरा असर पड़ेगा.”
ग्लोबल टाइम्स ने अपने ट्वीट में लिखा था, ”इन चीनी फर्मों का भारत में तीन अरब डॉलर का निवेश है और पाँच लाख भारतीयों को रोज़गार मिला हुआ है.”
अख़बार के अनुसार, एजेंसी का कहना है कि दोनों कंपनियां आयकर विभाग क़ानून के तहत अपनी मातहत कंपनियों के साथ किए गए लेन-देन के बारे में बताने के लिए बाध्य नहीं थीं.
विभाग ने कहा, “इस तरह की ख़ामी के लिए उन पर आयकर विभाग क़ानून के तहत क़ानूनी कार्रवाई बनती है, इसकी सज़ा 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का जुर्माना हो सकती है.”
एजेंसी का दावा है कि भारतीय कंपनी के बहीख़ाते में विदेशी फ़ंड्स को दिखाया गया था लेकिन जिस स्रोत के तहत यह फ़ंड्स आए हुए थे, उनकी प्रकृति पर संहेद था और कथित रूप से क़र्ज़दाता की कोई ख़ास योग्यता नहीं थी. इस तरह के उधार की रक़म 5,000 करोड़ रुपए बताई गई है, जिसमें ब्याज ख़र्चों का भी दावा किया गया है.
आयकर विभाग ने अपने बयान में कहा है, “ख़र्चों की रक़म, संबंधित कंपनियों के आधार पर किए गए भुगतान आदि को लेकर सबूत मिले हैं, जो भारतीय मोबाइल निर्माता कंपनी के कर योग्य लाभ में भी कमी दिखाते हैं. इस तरह की रक़म 1,400 करोड़ से अधिक हो सकती है.”
पहली कंपनी के मामले में कथित तौर पर वो भारत में ही स्थित दूसरी इकाई की सेवाएं ले रही थी और अप्रैल 2020 से प्रभाव में आए स्रोत पर ही कर कटौती के प्रावधानों का पालन नहीं कर रही थी. इस खाते पर देनदारी लगभग ₹300 करोड़ हो सकती है.