पूरे देश में तेजी से बढ़ते जा रहे कोविड-19 संक्रमण को देखते हुए राज्य सरकारें अपने-अपने राज्यों में आम लोगों के लिए मुफ्त वैक्सीन उपलब्ध करा रही है। बिहार में हर गांव के स्कूल पर लोगों को वैक्सीन लगाया जा रहा है तो दूसरी ओर ममता बनर्जी की सरकार ने इस प्रक्रिया को और जटिल बना दिया है। राज्य के निजी अस्पतालों में टीकाकरण को लेकर ममता सरकार ने नई निर्देशिका मंगलवार को जारी की है जिसकी वजह से इस बात की आशंका प्रबल हो गई है कि यहां सभी लोगों को मुफ्त वैक्सीन मिलना, वह भी समय पर, लगभग असंभव है। राज्य सरकार ने जो निर्देशिका जारी की है उसमें कहा गया है कि जो भी वैक्सीन राज्य सरकार की ओर से निजी अस्पतालों को दिया गया था उसके बचे हुए पुराने स्टॉक को 30 अप्रैल के बाद राज्य सरकार को लौटा देना होगा। अगर एक मई से प्राइवेट अस्पताल टीकाकरण की प्रक्रिया जारी रखना चाहते हैं तो उन्हें वैक्सीन उत्पादक संस्थान से खरीदनी होगी। साथ ही नोटिस देकर आम लोगों को भी बता देना होगा कि 30 अप्रैल के बाद किस अस्पताल में किस कीमत पर वैक्सीन उपलब्ध होगी। इसके अलावा पहले लोग अस्पतालों में पहचान पत्र लेकर जाते थे और वैक्सीन लगवा कर चले आते थे लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। केवल उन्हीं लोगों को वैक्सीन लगेगी जो कोविड पोर्टल पर पंजीकृत होंगे। इस निर्देशिका से दो बातें स्पष्ट है कि टीकाकरण प्रक्रिया काफी धीमी और देर तक चलने वाली है जिससे संक्रमण के और अधिक प्रसार की आशंका बढ़ रही है। इसके अलावा आम लोग जो प्राइवेट अस्पतालों में वैक्सीन लगवाना चाहेंगे उन्हें मोटी रकम चुकानी पड़ सकती है। चुकी संक्रमण से बचाव का सबसे बेहतर जरिया वैक्सीनेशन है इसलिए बहुत हद तक संभव है कि ऑक्सीजन और अन्य जरूरी दवाओं की तरह वैक्सीन खरीद कर उसकी भी कालाबाजारी शुरू की जा सके। कोविड पोर्टल के जरिए पंजीकरण और टीकाकरण की बारी आने में निश्चित तौर पर लंबा वक्त लगेगा जिससे लोग प्राइवेट अस्पतालों में वैक्सीनेशन के लिए दौड़ेंगे और इस मौके का लाभ प्राइवेट अस्पताल वाले उठा सकते हैं। चुनाव बीतने के बाद ममता सरकार की इस निर्देशिका को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं।