दक्षिण अफ्रीका में हिंसा और लूट के शिकार क्यों बने भारतीय मूल के लोग?

चौथी पीढ़ी के दक्षिण अफ़्रीकी भारतीय खैरात दीमा का कहना है कि हाल की हिंसा में डरबन शहर के सिटी सेंटर में उनकी किराना दुकान पूरी तरह से लूट ली गई.

उन्होंने बीबीसी अफ़्रीका को बताया, “लुटेरों ने मेरे स्टोर को ख़ाली कर दिया और जाने से पहले तोड़फोड़ की”.

खैरात ने अफ़सोस जताया कि “बहुत से लोगों ने अपनी दुकानों से अपना माल खो दिया.” जिन लोगों की दुकानों को लूटा गया या आग लगा दी गई या जिनके घरों में आग लगा दी गई उनमें से कई भारतीय मूल के संपन्न लोग थे जिससे समुदाय को ऐसा लगा कि हिंसा का निशाना वही हैं. पिछले दिनों सोशल मीडिया दक्षिण अफ़्रीका में हुई हिंसा के वीडियो और तस्वीरों से भरा पड़ा था जिनमें लोग दुकानों, मॉल, घर और ट्रकों को या तो लूट रहे हैं या उन्हें जलाते दिख रहे हैं.

अब हिंसा का दौर थम-सा गया है क्योंकि लगभग 25,000 सैनिक प्रभावित इलाक़ों में तैनात किए जा चुके हैं जिन्होंने हिंसा पर क़ाबू पा लिया है, लेकिन भारतीय मूल के लोगों में अब भी डर है.

माइनॉरिटी फ़्रंट पार्टी की शमीन ठाकुर-राजबंसी दक्षिण अफ़्रीका के क्वाज़ुलु-नटाल प्रांत के विधानसभा की एक निर्वाचित सदस्य हैं. उन्होंने डरबन से बीबीसी हिंदी से बात करते हुए कहा, “मैं आपको बता सकती हूँ कि अभी हर समुदाय डर में जी रहा है. ज़ाहिर है, जब हिंसा अपने चरम पर थी तो भारतीय समुदाय में काफ़ी ख़ौफ़ था क्योंकि यह एक स्वाभाविक बात है.”

इस हिंसा का केंद्र क्वाज़ूलू-नटाल का तटीय शहर डरबन था. यह डरबन शहर ही है जहां महात्मा गांधी 1893 में भारत से आकर रहे थे. बाद में गांधी जी ने पास के शहर फ़ीनिक्स में अपना आश्रम बनाया था, जो हाल की हिंसा में बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. भारत के बाहर भारतीय मूल के सबसे अधिक लोग किसी शहर में रहते हैं तो वह डरबन ही है.

पूर्व राष्ट्रपति जैकब ज़ूमा की गिरफ़्तारी के बाद दक्षिण अफ्रीका के कई शहरों में भड़की हिंसा में 117 लोग मारे भी गए.

भारतीय मूल के लोगों का कितना नुक़सान हुआ?

भारतीय मूल के लोग देश की आबादी का केवल ढाई प्रतिशत हैं, लेकिन इनमें से अधिकतर व्यापार से जुड़े हैं और धनी हैं.

उन्हें हुए नुक़सान का अंदाज़ा अभी पूरी तरह से नहीं लगाया जा सका है, लेकिन लूट-खसोट और तोड़-फोड़ ने समुदाय की आर्थिक कमर तोड़ दी है.

डरबन में शैक्षिक और राजनीतिक विश्लेषक लुबना नदवी ने बीबीसी हिंदी को बताया, “रंगभेद के ज़माने में कुछ ख़ास भारतीय टाउनशिप को बसाया गया था. फ़ीनिक्स जैसे कुछ भारतीय टाउनशिप में जो नुक़सान हुआ है वो भारतीय लोगों का ही हुआ है क्योंकि वहां ज़्यादातर भारतीय ही रहते हैं, लेकिन जो बड़े औद्योगिक और आर्थिक क्षेत्र हैं वहां सबका नुक़सान हुआ है.”\

पंजीयन ब्रदर्स नाम की एक भारतीय कंपनी की पांच शाखाएं हैं जिनमें से चार लूट ली गईं. इसके मालिक ने मीडिया वालों को बताया कि उन्होंने अपनी एक दुकान को लुटते हुए और पूरी तरह से गिरते हुए लाइव टीवी पर देखा. इसके बाद उनके रिश्तेदारों की बग़ल वाली दुकानें को लूटा गया और जला दिया गया.

भारतीय मूल की विधायक शमीन ठाकुर-राजबंसी कहती हैं, “तस्वीर यह है कि व्यवसायों पर अंधाधुंध हमला किया गया और पूर्व भारतीय क्षेत्रों में कई व्यवसाय तबाह हो गए और घरों पर हमला किया गया”.

लुबना नदवी के मुताबिक़ कुछ दिनों तक घर में खाना उपलब्ध नहीं था क्योंकि फ़ूड सप्लाई करने वाले ट्रकों को आग लगा दी गई और ब्रेड-दूध वाली छोटी दुकानों को भी तबाह कर दिया गया.

By Editor

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