बालुरघाट के चक भवानी श्मशान काली मंदिर की ऐतिहासिक काली पूजा इस वर्ष 174वें वर्ष में পদার্পण कर रही है। यह पूजा हर साल दीपावली की अमावस्या तिथि पर वीराचार पद्धति के अनुसार श्रद्धा और भक्ति भाव से संपन्न होती है। यह पूजा 1852 में शुरू हुई थी और तब से लगातार चली आ रही है। बालुरघाट चक भवानी श्मशान कालीबाड़ी सोशल वेलफेयर सोसाइटी के सदस्य इस पूजा का आयोजन करते हैं।
पूजा की विशेषताएं:
पूजा के दिन संध्या समय देवी का बরণ किया जाता है, जिसके बाद रात्रि में मुख्य पूजा होती है। पूजा में बकरे की बलि के साथ-साथ बोआल और शोल मछली एवं पांठार मांस से देवी की भोग अर्पण की जाती है। पूजा के अगले दिन सुबह से दोपहर तक मां का अन्न भोग श्रद्धालुओं में वितरित किया जाता है। दीपावली की अमावस्या के अलावा हर महीने की अमावस्या को भी काली पूजा होती है और प्रसाद वितरण किया जाता है।
शिवरात्रि के अवसर पर शिव पूजा, और चैत्र संक्रांति पर तारा काली पूजा, शिव गाजन, और बाउल कीर्तन का भी आयोजन होता है। सोसाइटी के सदस्यों का कहना है कि वे इस पूजा को न केवल धार्मिक आस्था, बल्कि सामाजिक एकता और सेवा भावना के साथ आगे बढ़ाते हैं। इस ऐतिहासिक पूजा को लेकर स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं में गहरा उत्साह और भक्ति भाव देखा जा रहा है।
