सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अगर किसी वाहन का वैध पंजीकरण नहीं है तो इसके लिए बीमा के दावे को खारिज किया जा सकता है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने कार चोरी के एक मामले में बीमा के दावे को रद्द कर दिया। इस कार का अस्थायी पंजीकरण था। न्यायाधीश यूयू ललित ने कहा कि पॉलिसी के नियमों और शर्तों का मौलिक उल्लंघन होने पर बीमा राशि का दावा खारिज कर दिया जाएगा।
मामले की सुनवाई कर रही पीठ में न्यायाधीश एस रवींद्र और बेला एम त्रिवेदी भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि अहम बात यह है कि इस कानून के बारे में न्यायालय की राय यह है कि अगर ऐसी कोई घटना होती है जिसे लेकर बीमा का दावा किया जा सकता है तो यह दावा करने पर बीमा के अनुबंध में निहित शर्तों का कोई मौलिक उल्लंघन नहीं होना चाहिए। अदालत यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेशन कॉरोपोरेशन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
इस मामले में पॉलिसीधारक ने एक नई बुलेरो खरीदी थी जिसका अस्थायी पंजीकरण था। पंजीकरण समाप्त होने के बाद, उन्होंने अपने शहर के बाहर यात्रा की। बुलेरो गेस्ट हाउस परिसर के बाहर खड़ी थी जहां से चोरी हो गई। उन्होंने बीमा का दावा किया लेकिन इस आधार पर इसे अस्वीकार कर दिया गया कि वाहन का अस्थायी पंजीकरण समाप्त हो गया है।
इसके बाद, उन्होंने जिला फोरम से संपर्क किया और बीमाकर्ता को वाहन के लिए ₹1,40,000/- के किराए की राशि के साथ बीमा राशि का भुगतान करने का निर्देश देने की मांग की और मानसिक पीड़ा और मुकदमेबाजी के हर्जाने के लिए राहत का भी दावा किया। उक्त शिकायत खारिज हो गई, जिसके खिलाफ उन्होंने राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग का दरवाजा खटखटाया।
इस वाहन की बीमा राशि 6.17 लाख रुपये थी और इसका अस्थायी पंजीकरण 19 जुलाई 2011 को समाप्त हो गया था। शिकायतकर्ता एक निजी ठेकेदार है और व्यापार के सिलसिले में उसे अक्सर शहर से बाहर रहना पड़ता है। वह 28 जुलाई 2011 को जोधपुर गया था और रात में एक गेस्ट हाउस में रुका था। यहां पर उसने कार गेस्ट हाउस परिसर के बाहर खड़ी की थी। सुबह जब वह उठा तो उसने देखा कि उसकी कार चोरी हो चुकी है।
इसे लेकर उसने जोधपुर में एक एफआईआर दर्ज कराई थी। हालांकि, 30 नवंबर, 2011 को पुलिस ने एक अंतिम रिपोर्ट दर्ज की थी जिसमें कहा गया था कि वाहन का पता नहीं चल रहा है। शीर्ष अदालत ने कहा कि चोरी की तारीख तक वाहन बिना वैध पंजीकरण के चलाया जा रहा था। यह मोटर वाहन अधिनियम की धारा 39 और 192 का स्पष्ट उल्लंघन है। पीठ ने कहा कि ऐसे में एनसीडीआरसी के आदेश को कायम नहीं रखा जा सकता है।