रास उत्सव के लिए रास चक्र बनता है मुस्लिम परिवार, तीन पीढ़ियों से कर रहा काम

कूचबिहार शहर के पास तोर्षा नदी के तट पर एक मुस्लिम परिवार तीन पीढ़ियों से रास उत्सव में काम आने वाले रासचक्र बनाता आ रहा है। रविवार को लक्ष्मी पूर्णिमा के दिन उपवास रहकर अल्ताफ ने रसचक्र बनाने का काम शुरू किया।

उल्लेखनीय है कि महाराजा नृपेंद्रनारायण ने १८९३ में बैरागी दिघी के तट पर मदनमोहन मंदिर का निर्माण कराया गया था। हर साल रास पूर्णिमा के दिन यहाँ रात उत्सव शुरू होता है। पहले राजा रासचक्र को घुमाकर रास उत्सव की शुरुआत करते थे। अब देवत्र ट्रस्ट बोर्ड के अध्यक्ष और कूचबिहार के जिलाधिकारी इस उत्सव का उद्घाटन करते हैं। यह रासचक्र हिंदू, मुस्लिम और बौद्ध संस्कृति के मेल से बनता है।

शुरुआत में कूचबिहार के हरिन चौड़ा छवरा क्षेत्र के निवासी पान ममुद मियां को राजाओं द्वारा इस रसचक्र को बनाने का काम सौंपा गया था। बाद में उनके बेटे अजीज मियां को उस रासचक्र को बनाने की जिम्मेदारी मिली। उसके बाद उनका बेटा अल्ताफ मियां यह रासचक्र बना रहा है। लक्ष्मी पूजा के दिन अल्ताफ ने उपवास कर रासचक्र बनाने का काम शुरू किया। रास चक्र बनाने के दौरान वे अगले एक महीने तक शाकाहारी भोजन करेंगे। इसके बाद रास पूर्णिमा के दिन मदनमोहन के घर जाकर वहीँ  पूरा रासचक्र बनायेंगे । साथ ही अल्ताफ मियां को ट्रस्ट की ओर से ७००० रुपये मासिक तनख्वाह की नौकरी दी गयी है।

इस वर्ष भी रास पूर्णिमा के दिन रास चक्र को घुमाकर उत्सव की शुरुआत की जाएगी। इसके लिए  रविवार को उन्होंने लक्ष्मी पूर्णिमा के दिन उपवास किया और रासचक्र बनाने का काम शुरू किया।
अल्ताफ मियां ने कहा कि ‘राजशाही काल से ही लक्ष्मी पूर्णिमा के दिन उपवास कर रासचक्र बनाने का काम शुरू करने का रिवाज है। मैं भी उस परंपरा का पालन करता हूं।’

By Priyanka Bhowmick

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