मसाई स्कूल एक ऐसा मंच है, जहाँ कौशल का संयोजन अवसरों से किया जाता है। इस स्कूल ने भारत में 5000 से अधिक विद्यार्थियों के सपने पूरे करने में सफलता पाई है। नतीजे देने वाले एक कॅरियर इंस्टिट्यूट के रूप में काम करते हुए, इसने 100 से ज्यादा बैचेस को प्रशिक्षित किया है और बीते वर्षों में अपना दायरा बढ़ाते हुए, अभी 6000 से अधिक एनरोलमेंट्स हासिल कर लिये हैं। इसी महीने यह संस्थान अपने पाँच साल पूरे कर रहा है और अपने एकमात्र लक्ष्य की प्राप्ति भी सुनिश्चित कर चुका है। इसका लक्ष्य है शिक्षा प्रणाली को नतीजों पर आधारित बनाकर भारत की मानवीय क्षमता को सामने लाना।
मसाई स्कूल के बारे में बात करते हुए, उसके सह-संस्थापक एवं सीईओ प्रतीक शुक्ला ने कहा, ‘‘हमारा लक्ष्य कुशलताओं को निखारने का एक मंच देकर विद्यार्थियों की क्षमता को सामने लाना है, ताकि निश्चित परिणाम मिल सकें। हम नई-नई स्कीम्स लाने और स्थापित फ़र्म्स के साथ मिलकर काम करते हुए अपनी टीमों को बढ़ाने के लिये समर्पित हैं। इससे विद्यार्थियों के लिये अवसर भी बढ़ेंगे। हम शिक्षा के परितंत्र को प्रगतिशील तरीके से बदलने की सोच रखते हैं।’’
सुंदरबन, पश्चिम बंगाल से आने वाले देबोब्रत हलदर को आईटी सेक्टर में जाने की आकांक्षा थी। खेती की पृष्ठभूमि से आने के बावजूद, उन्हें अपने पैरेंट्स से प्रोत्साहन और सहयोग मिला। लेकिन वह रोजाना दो घंटे सफर करने की चुनौती से जूझते थे। मसाई के साथ अपनी यात्रा के बारे में उन्होंने कहा, ‘‘कोलकाता से आना और वापस जाना सबसे बड़ी चुनौती थी। कोविड-19 के दौरान स्थिति और भी कठिन हो गई थी। फिर मुझे मसाई के बारे में पता चला कि वे अग्रिम शुल्क के बिना कोडिंग की शिक्षा देते हैं। मसाई के सख्त पाठ्यक्रम के साथ ताल-मेल बैठाने के लिये मैं बेहतर इंटरनेट तथा संसाधनों की तलाश में कोलकाता आ गया। कुछ दिन समर्पण और जुनून के साथ बिताने के बाद, मैं अभी मसाई स्कूल में ही इंस्ट्रक्शनल असोसिएट हूँ।’’ देबोब्रत अभी बेंगलुरु में तरक्की कर रहे हैं और उनका सफर दूसरों को भी प्रेरित करता है। इससे साबित होता है कि संकल्प और सहयोग होने पर अड़चनें सपनों को पूरा करने वाले अवसरों में बदल सकती हैं।
इधर कोलकाता, पश्चिम बंगाल से आने वाले इंद्रजीत पॉल का बचपन फुटबॉल के इर्द-गिर्द रहा। लेकिन पिता की मृत्यु के बाद उनके सामने कई आर्थिक चुनौतियाँ आईं और शिक्षा के मामले में उन्हें अपनी पसंद बदलनी पड़ी। उन्होंने विज्ञान की पढ़ाई करते हुए शिक्षा तथा फुटबॉल में उत्कृष्टता हासिल की और वह चैरिटी का काम भी करते थे। कोविड-19 से उनके एनजीओ के काम और रोजगार की संभावनाओं में बाधा आई। फिर उन्हें मसाई और उसके पे-आफ्टर-प्लेसमेंट मॉडल के बारे में पता चला। अपने सफर के बारे में उन्होंने बताया, ‘’मैंने आर्थिक बाधाओं से उभरने के लिये मसाई को जॉइन किया और मुझे आईटी के फील्ड में कामयाबी मिली। सेहत खराब रहने के बावजूद, मसाई के सहयोगी माहौल और मेरे मेंटर ने अपनी शिक्षा के लिये समर्पित और एकाग्र रहने में मेरी मदद की। इंटरव्यू के बाद मुझे एएलवायएफ में एसडीई-1 का पद मिला और मेरा वेतन भी काफी बढ़ गया। मेरे परिवार की जिन्दगी ही बदल गई।’’
कोलकाता, पश्चिम बंगाल के निवासी और सहयोगी प्रवृत्ति के एक परिवार से आने वाले अर्णव को अपना जेंडर बदलते वक्त चुनौतियाँ मिलीं। बीएससी की डिग्री पाने के बाद उन्होंने गणित के लिये अपने जुनून को मौके में बदला और ट्यूशन पढ़ाने लगे। मसाई में अपने सफर पर बात करते हुए, उन्होंने कहा, ‘‘मुझे एक प्रभावशाली यूट्यूबर से मसाई के बारे में पता चला। और मसाई के पे-आफ्टर प्लेसमेंट मॉडल और विस्तृत पाठ्यक्रम से प्रभावित होकर मैं मसाई में एनरोल हो गया। लेकिन वह कोई आम शैक्षणिक संस्थान नहीं है; उसने मुझे बदलाव लाने वाला अनुभव दिया। मुझे कोडिंग के अलावा व्यवहार कौशल और संवाद को सीखने में भी मदद मिली। इससे कार्यस्थल और उसके बाहर मुझमें आत्मविश्वास पैदा हुआ।’’ अपनी लगन के चलते अर्णव को पढ़ते वक्त ही नौकरी के तीन ऑफर मिले। अभी वह एसपीसीओ में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। मसाई स्कूल के पास गहन प्रशिक्षण एवं प्रभावशाली मार्गदर्शन के अलावा 4500 से ज्यादा नियोक्ता भागीदार भी हैं, जो सुनिश्चित करते हैं कि उसके विद्यार्थी आसानी से अपनी चाहत के कॅरियर बना सकें। नियोक्ता भागीदारों का यह विस्तृत नेटवर्क मसाई के ग्रेजुएट्स की रोजगार-योग्यता को बढ़ाता है। यह नेटवर्क उनके प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरे होने पर जॉब मार्केट के लिये उन्हें प्रतिस्पर्द्धी बनाता है। उद्योग के बड़े-बड़े फ़र्म्स के साथ भागीदारी करने के अलावा, मसाई स्कूल ने तीन आईआईटी फ़र्म्स के साथ भी गठजोड़ किये हैं- आईआईटी गुवाहाटी, आईआईटी मंडी और आईआईटी रोपड़। इसके साथ-साथ राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) के साथ भी उसकी भागीदारी है, जिससे बाधाएं टूट रही हैं और संभावनाएं बढ़ रही हैं।