हैदराबाद स्थित डीपटेक कंपनी सिंप्लिफोर्ज ने आईआईटी हैदराबाद के सहयोग से देश के पहले और सबसे बड़े मिलट्री इनसाइनिया आर्च का निर्माण किया है। यह भारत की सैन्य विरासत और डिजिटल निर्माण के भविष्य को समर्पित एक ऐतिहासिक पहल है। भारतीय सशस्त्र बलों की वीरता, शक्ति और अदम्य साहस के प्रतीक बाघ के चेहरे को प्रभावशाली रूप में डिजाइन किया गया है। यह शानदार ढांचा अब झांसी कैंटोनमेंट में शान से खड़ा है। यह अनोखा आर्किटेक्चर सिर्फ एक प्रवेश द्वार ही नहीं है, बल्कि एक संदेश है। 5.7m x 3.2m x 5.4m माप वाला यह प्रवेश द्वार सिंप्लिफोर्ज की अत्याधुनिक रोबोटिक आर्म–आधारित 3D कंक्रीट प्रिंटिंग तकनीक से बनाया गया है। यह डिफेंस निर्माण इनोवेशन में एक महत्वपूर्ण कदम है। बाघ-थीम वाला यह आर्क कैंटोनमेंट के भीतर स्थित इनडोर स्पोर्ट्स एरीना की ओर भी जाता है, जो प्रतीकात्मक और उपयोगी इंफ्रास्ट्रक्चर को सहजता से जोड़ रहा है।
यह परियोजना कर्नल अखिल सिंह चरक के दूरदर्शी नेतृत्व में परिकल्पित की गई थी। इसके संरचनात्मक और डिजाइन विकास का नेतृत्व आईआईटी हैदराबाद के प्रोफेसर के. वी. एल. सुब्रमणियम (HAG) और सिंप्लिफोर्ज ने संयुक्त रूप से किया है। कॉन्सेप्ट से लेकर क्रियान्वयन तक, इस प्रवेश द्वार को बारीकी से तैयार किया गया ताकि यह हर उस व्यक्ति में गर्व, पहचान और सम्मान की भावना जागृत करे जो इसके नीचे से गुजरता है। इसका आकर्षक रूप केवल प्रतीकात्मक नहीं है—यह इस बात का भविष्यगामी प्रमाण है कि भारत का डिफेंस इन्फ्रास्ट्रक्चर स्वदेशी, इनोवेशन और सहयोग के माध्यम से क्या हासिल कर सकता है। सेना के कर्नल अखिल सिंह चरक ने अपने विचार साझा करते हुए कहा, “यह प्रवेश द्वार सिर्फ एक संरचना नहीं है—यह हमारे बलों के मूल्यों ‘नाम, नमक, निशान’ का प्रतिनिधित्व करता है। यह एक नए विचार के रूप में शुरू हुआ था। अब यह एक मूर्त रूप ले चुका है। यह प्रवेश द्वार हमारी विरासत, हमारे गौरव और भारतीय सेना की दूरदर्शी सोच को प्रदर्शित करता है। 3D प्रिंटिंग तकनीक के विकास और डिफेंस इन्फ्रास्ट्रक्चर को नए रूप में परिभाषित करने में महत्वपूर्ण योगदान के लिए मैं आईआईटी हैदराबाद और सिंप्लिफोर्ज का आभार व्यक्त करता हूँ।”
फसाड के बारे में बात करते हुए आईआईटी हैदराबाद के प्रोफेसर के. वी. एल. सुब्रमणियम (HAG) ने कहा, “बाघ फसाड दर्शाता है कि उन्नत 3D कंक्रीट प्रिंटिंग तकनीक हमें पारंपरिक सीमाओं से परे जाकर स्ट्रक्चरल डिजाइन को नए तरीके से सोचने की अनुमति देती है। स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों और एक विशेष रूप से तैयार प्रिंटेबल मिश्रण का उपयोग करके, हम एक जटिल, जैविक आकृति तैयार करने में सफल हुए हैं। यह इंजीनियरिंग की सटीकता को आर्किटेक्चर से जोड़ती है। यह परियोजना सामग्री विज्ञान, स्ट्रक्चरल इनोवेशनऔर डिजिटल निर्माण के बीच विकसित हो रहे तालमेल का उदाहरण है। यही इस तरह के रूपों को संभव बनाती है। यह स्ट्रक्चरल रूप से सक्षम होने के साथ-साथ दिखने में भीआइकॉनिक हैं।”
