पुरुष बांझपन: भारत में लगातार बढ़ती सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता

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बांझपन (इनफर्टिलिटी) स्वास्थ्य को लेकर एक वैश्विक चिंता है। हर साल दुनिया भर में लगभग 60-80 मिलियन दम्पति इस समस्या का सामना कर रहे हैं, और आश्‍चर्यचकित करने वाली बात यह है कि इनमें से 15-20 मिलियन दम्पति भारतीय हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, विकासशील देशों में प्रत्येक चार में से एक दम्पति बांझपन की चुनौतियों का सामना करता है। WHO के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि भारत में बांझपन की मौजूदगी लगभग 15 से 20 प्रतिशत है, और इसमें पुरुष बांझपन यानी मेल इनफर्टिलिटी का योगदान लगभग 40 प्रतिशत है। 

डॉक्टरों का भी कहना है कि भारत में पिछले दशक में पुरुष बांझपन में वृद्धि देखने को मिली है। इंडियन सोसायटी ऑफ असिस्‍टेड रिप्रोडक्‍शन (आईएसएआर)  के अनुसार, भारत में लगभग 10-14 प्रतिशत दम्पति इनफर्टाइल हैं और इन सबके बीच सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बांझपन की संख्या केवल महिलाओं में ही नहीं, बल्कि पुरुषों में भी बढ़ रही है। लेकिन सबका ध्यान और बोझ हमेशा महिलाओं पर ही रहता है, इसलिए बड़ी संख्या में पुरुष जो प्रजनन समस्याओं से पीड़ित हैं, इसे खुलकर नहीं बताते हैं और इस प्रकार उचित देखभाल और मार्गदर्शन से वंचित रह जाते हैं। हालांकि, अधिकांश मामलों में बांझपन किसी दम्पति को पितृत्व के आनंद का अनुभव करने से नहीं रोकता।

बांझपन के कई कारण हो सकते हैं। यह पुरुष और महिला दोनों के प्रजनन तंत्र को प्रभावित करता है। कारणों में रिप्रोडक्टिव ट्रैक्‍ट्स (जैसे, स्खलन नलिकाएं और वीर्य वाहिनी) में बाधा के कारण रुकावटें शामिल हैं जो वीर्य स्खलन में समस्याएं पैदा करती हैं, पिट्यूटरी ग्रंथि, हाइपोथैलेमस और वृषण द्वारा उत्पन्न हार्मोन में हार्मोनल असंतुलन, या जब वृषण स्‍पर्म उत्पन्न करने में विफल रहते हैं, तब स्‍पर्म उत्पन्न करने वाली कोशिकाओं को प्रभावित करने वाली स्थितियों के कारण, और स्‍पर्म के असामान्य आकार या गुणवत्ता के कारण भी इसकी संरचना और गति प्रभावित होती है जिससे महिला एग्‍स को निषेचित करना कठिन हो जाता है।

इसके अलावा, पढ़ाई और कॅरियर को ज्‍यादा महत्‍व देने की वजह  से लोग देर से शादी कर रहे हैं। अब ज्यादातर पुरुष और महिलाएं अपने तीसवें साल के बाद शादी करते हैं और इससे पितृत्व में देरी होती है। जैसे-जैसे पुरुषों की उम्र बढ़ती है, उनके स्‍पर्म की गुणवत्ता भी घटती जाती है, जिससे दंपति के लिए स्वाभाविक रूप से गर्भधारण करना कठिन हो जाता है। इसके अलावा, कई सामान्य समस्याएं जो पुरुष दैनिक आधार पर सामना करते हैं, बांझपन में योगदान देती हैं। इनमें तनाव, मोटापा, वृषण में गंभीर चोट या लंबे समय तक वृषण का गर्म होना जैसी समस्याएं शामिल हैं। शराब या तंबाकू जैसे नशीले पदार्थों का हानिकारक सेवन भी बांझपन की समस्याओं को बढ़ावा देता है।

इसी पर बात करते हुए जीनोम फर्टिलिटी सेंटर, कोलकाता की इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट डॉ. सबनम परवीन कहती हैं, “गतिहीन जीवनशैली और तनाव के कारण शहरी केंद्रों में पुरुष बांझपन बढ़ रहा है। शारीरिक गतिविधि की कमी टेस्टोस्टेरोन उत्पादन को प्रभावित करती है, जिसके निम्न स्तर से शुक्राणु की गुणवत्ता खराब हो सकती है। कार्यस्थल पर तनाव चिंता का कारण बन सकता है, जो हार्मोनल असंतुलन के साथ मिलकर अवसाद और सहनशक्ति में कमी का कारण बन सकता है। व्यायाम करना और स्वस्थ आहार का पालन करना उन कई समस्याओं का इलाज है जिनका सामना लोग आधुनिक जीवनशैली के परिणामस्वरूप करते हैं, जहां हम दिन के अधिकांश समय अपने डेस्क से बंधे रहते हैं। किसी भी जीवनशैली में संतुलित फिटनेस आहार को शामिल करने से न केवल शारीरिक कल्याण बढ़ता है बल्कि माता-पिता बनने की दिशा में यात्रा में भी मदद मिलती है।” 

मेल इनफर्टिलिटी को प्रमुख रूप से छोटे शहरों और कस्बों में कलंक या लांछन माना जाता है, जहां परिवार आमतौर पर काफी करीब रहते हैं, और इससे पुरुषों और उनके परिवारों को डर लगता है कि अगर उनकी बांझपन की समस्याओं के बारे में लोगों को पता चला तो वो क्‍या कहेंगे। इससे उनकी सामाजिक स्थिति पर भी असर पड़ सकता है। इस विषय में छोटे शहरों के अंतर्गत कलंक में कमी लाने के लिए शैक्षिक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने से काफी मदद मिल सकती है। विशेषज्ञ डॉक्टरों और नर्सों द्वारा संचालित विशेष प्रजनन क्लीनिक समय की आवश्यकता हैं क्योंकि यह विशेषज्ञता को अनछुए क्षेत्रों के करीब लाएगा। एक प्रजनन विशेषज्ञ के नाते हमारा कर्तव्य है कि हम दम्पति को उनके पितृत्व के रास्ते पर मार्गदर्शन करें और उनके अवरोध को दूर करने के लिए सबसे बेहतरीन समाधान खोजें।