नदिया में मछुआरों की बारिश पूर्व तैयारी नाव मरम्मत और सुरक्षा कार्य अंतिम चरण में

इस समय राज्य में मानसून का मौसम चल रहा है। ऐसे में गंगा और अन्य नदियों में मछली पकड़ने की तैयारियाँ ज़ोर-शोर से चल रही हैं। मछली पकड़ने के लिए नाव का महत्व सबसे अधिक होता है, इसलिए मछुआरे अपनी नावों की मरम्मत, रंगाई और इंजन ठीक करने के कार्यों में जुटे हुए हैं। सिर्फ मछली पकड़ने के लिए ही नहीं, संभावित बाढ़ की स्थिति में जलमग्न इलाकों से लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए भी नावों की मरम्मत का कार्य अंतिम चरण में पहुँच गया है। नदिया के कई मछुआरे पहले ही गंगा और समुद्र की ओर निकल चुके हैं, जबकि कई अन्य नावों को पूरी तरह तैयार रखने में व्यस्त हैं।

नाव मरम्मत करने वाले कारीगरों का कहना है कि मानसून से पहले कुछ महीनों के लिए उनका काम बहुत बढ़ जाता है। वे पीढ़ी दर पीढ़ी इस पारंपरिक कार्य को करते आ रहे हैं। कारीगरों के अनुसार, नाव की मरम्मत में अच्छा ख़ासा खर्च आता है, खासकर यदि लकड़ी (शाल की काठ) से बनी हो। कई मछुआरे नई नाव भी बनवाते हैं, जिसे समुद्र में ले जाने के लिए लगभग डेढ़ लाख रुपये तक का खर्च आता है। यह पैसा कुछ वे खुद लगाते हैं और बाकी उधार या महाजन से कर्ज़ लेकर जुटाते हैं। प्रतिदिन मछली पकड़कर उन्हें थोक में बेचना होता है और यही उनकी आजीविका है। लेकिन यह सब जल पर निर्भर होता है, जहाँ हर दिन खतरे की आशंका बनी रहती है।

बाढ़ के समय वे आम लोगों की मदद के लिए भी आगे आते हैं और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाते हैं। एक मछुआरे ने बताया कि बारिश के समय जब वे समुद्र की ओर निकलते हैं, तो उनका मन अपने परिवार की चिंता में लगा रहता है। क्योंकि वे गंगा या नदी किनारे रहते हैं, जहां बाढ़ का पानी बढ़ने पर चिंता और भी बढ़ जाती है। बरसात के महीनों विशेषकर आषाढ़ और श्रावण में सबसे ज्यादा बारिश होती है, और यही समय उनके लिए सबसे कठिन होता है। यदि नावों की ठीक से देखभाल न की जाए, तो कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। इसलिए वे हर समय सतर्क रहते हैं और नावों को सुरक्षित रखने का पूरा प्रयास करते हैं।

By Sonakshi Sarkar