आधुनिकता युग में हम भूलते जा रहे हैं अपनी  परम्परा, संस्कृति और संस्कार, खोगीर के कलम की सरस्वती पूजा में कम होता जा रहा है प्रयोग, नहीं जानते है इसके विषय में कई विद्यार्थी

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वर्तमान परिदृश्य में हम लोग अपने पुराणी परम्परा,  संस्कृति और संस्कारों को दिन-प्रतिदिन पीछे छोड़कर आगे आधुनिकता की अंधी दौड़ में शामिल होते जा रहे है। संस्कृति-संस्कार ऐसे अभिन्न अंग हैं जिनसे समाज तय होता है, लेकिन धीरे-धीरे हम इससे दूर होते जा रहे है, सरस्वती पूजा में  पहले कंडे की कमल के बिना पूजा नहीं होती थी, कंडे की कलम को खोगीर कलम का कलम भी कहते है। 

 यह सरस्वती पूजा की सामग्रियों में से एक है। लेकिन  खोगीर कलम शहर के बाजार में मिलना से दुर्लभ होता जा रहा है। विकल्प के तौर पर स्ट्रॉ या थर्मोकपल पेन बाजार में आ गए हैं। अगर आपको उस क्वालिटी का पेन कहीं मिल भी जाए तो उसकी कीमत ऊंची होती है। एक दुकानदार के मुताबिक, अब इस  खागीर कलम को प्राचीन घोषित करने का समय आ गया है। 

बागदेवी की मूर्ति के चरणों में बैठकर, कच्चे दूध में कलम डुबोकर और कागज के टुकड़े पर ‘ओम सरस्वत्यै नमः’ लिखकर, कई लोग अपने बचपन के दिनों को  दिनों में निश्चित तौर पर याद करते होंगे। लेकिन वर्तमान पीढ़ी के कई लोग नहीं जानते कि खागीर कलम  क्या है और पूजा में इसका क्या महत्व है। जरूरत है कि इसके विषय में अभिभावक अपने बच्चों को बताएं।