असमः चरमपंथी संगठनों के साथ शांति समझौते, फिर समूचा असम ‘अशांत क्षेत्र’ कैसे?

233

बीजेपी की केंद्रीय सरकार ने बीते डेढ़ साल में असम के चरमपंथी संगठनों और कई समूहों के साथ दो बड़े शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए है. पिछले साल 20 फरवरी को असम के बोडो चरमपंथी संगठनों के साथ एक शांति समझौता किया गया था. जबकि दूसरा शांति समझौता 4 सितंबर को नई दिल्ली में कार्बी आंगलोंग ज़िले के चरमपंथी गुटों के साथ किया गया है.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इन विद्रोही संगठनों के साथ हुए शांति समझौते के बाद कहा था कि उनकी सरकार ने पूर्वोत्तर क्षेत्र को स्थिरता के साथ अशांति से बाहर लाने का काम किया है.

असम सरकार भी यह दावा कर रही है कि 2016 में प्रदेश में बीजेपी का शासन आने के बाद अलग-अलग चरमपंथी संगठनों के तीन हज़ार से भी अधिक चरमपंथियों ने हथियार डाल दिए है. इन सरकारी दावों में यह भी कहा गया कि असम तथा पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवाद की घटनाओं में लगातार कमी आई है.

बावजूद इसके असम सरकार ने सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (आफस्पा) की धारा 3 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए 28 अगस्त से अगले छह महीने तक पूरे असम राज्य को “अशांत क्षेत्र” घोषित कर दिया है. ऐसे में ये दोनों बातें अर्थात असम में शांति स्थापित हुई है और प्रदेश को “अशांत क्षेत्र” घोषित करना विरोधाभासी लगती हैं.

दरअसल आफस्पा क़ानून के तहत असम पर बीते 31 वर्षों से “अशांत क्षेत्र” का टैग लगा हुआ है. जानकारों का कहना है कि इस क़ानून के कारण प्रदेश की छवि को जो नुकसान पहुंचा है अभी उसको सुधारने की आवश्यकता है. वरना राज्य के बाहर से “अशांत क्षेत्र” में निवेश करने कोई आना नहीं चाहेगा.

असम में इस क़ानून को पहली बार नवंबर 1990 में लागू किया था. यह वो साल था जब भारत सरकार ने असम के प्रमुख अलगाववादी संगठन यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ असम यानी उल्फ़ा को एक आतंकवादी संगठन घोषित करते हुए उस पर प्रतिबंध लगा दिया था.

नब्बे के दशक में असम में चरमपंथियों के शस्त्र संघर्ष के कारण हुई हिंसा और ख़ून ख़राबे में सैकड़ों नागरिकों, सुरक्षा बलों और स्वयं विद्रोहियों को अपनी जान गवानी पड़ी थी लेकिन आज प्रदेश में हालात काफ़ी हद तक सामान्य हैं.

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने 12 जुलाई को विधानसभा के अंदर कहा था कि 2016 के बाद से अबतक राज्य में 3439 चरमपंथियों ने आत्मसमर्पण किया है. साल 2016 में पहली बार बीजेपी असम की सत्ता में आई थी. सरकार ख़ुद बता रही है कि असम में पहले के मुकाबले चरमपंथी घटनाओं में कमी आई है.

मुख्यमंत्री सरमा ने यह भी जानकारी दी थी कि उनकी सरकार वर्तमान में अल्फ़ा (प्रो-टॉक), कुकी रिवोल्यूशनरी आर्मी, यूनाइटेड कुकीगाम डिफेंस आर्मी, हमार पीपुल्स कन्वेंशन- डेमोक्रेटिक सहित 11 चरमपंथी संगठनों के साथ शांति वार्ता कर रही है. लेकिन अलगाववाद की समस्या से निपट रही असम सरकार की नीतियां और शांति समझौते के लिए आत्मसमर्पण करने वाले कैडरों के पुनर्वास को लेकर सवाल उठते रहें है. इन सवालों का एक बड़ा कारण राज्य को “अशांत क्षेत्र” की श्रेणी में रखना बताया जा रहा है.