400 वर्ष पुरानी है सेनबाड़ी की दुर्गा पूजा

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ओल्ड मालदा के सेनबाड़ी की देवी दुर्गा विभिन्न आभूषणों से सुशोभित हैं, देवी के माथे पर सोने का अर्धचंद्र, गले में सोने की हार , नाक में  सोने की नथ और माथे पर बिंदी उनकी शोभा बढ़ा रही है। स्वप्न लोक में मिले पीतल के बर्तन, गिलास और पान के मसाले का पात्र देवी दुर्गा के पास रखे जाते हैं. और फिर शुरू होता है  पूजा-पाठ का सिलसिला। यहाँ तक कि दुर्गापूजा में भी यहाँ नौवीं के दिन काले बकरे की बलि की प्रथा है।

400 साल पुरानी सेनबाड़ी की दुर्गा पूजा की रस्म आज भी बदस्तूर जारी है। ओल्ड मालदा के बाचामारी इलाके में सेनबाड़ी की दुर्गा पूजा को लेकर कई मिथक हैं। जिसे लेकर आज भी लोग तरह-तरह की चर्चा करते हैं। पूजा मंडप में आसीन होते ही र देवी दुर्गा जाग्रत रूप में आ जाती है। इलाके के बुजुर्गों का दावा है कि  यहाँ  भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।यही कारण है पूजा के दौरान  देवी दुर्गा का दर्शन करने व उनका आशीर्वाद लेने के लिए काफी संख्या में लोग  यहाँ पहुँचते हैं। सदियों से प्राचीन नियमों का पालन करते हुए बाछामारी क्षेत्र के सेनबाड़ी  में दुर्गा पूजा आयोजित की जाती रही है। कहा जाता है कि इंग्लिशबाजार के जमींदार शरत चंद्र भट्टाचार्य अश्विनी भट्टाचार्य सेनबाड़ी के चचेरे भाई थे। एक शरद ऋतु की सुबह, नदी में स्नान करते समय, उन्होंने एक सुंदर महिला को अपने चार बच्चों और कुछ बर्तनों के साथ देखा। उस समय पुजारी अश्विनी भट्टाचार्य ने महिला से पूछा कि वह इतनी सुबह कहां जाएगी।  जवाब मिला सेन के घर जाएँगी । पुजारी नदी में स्नान कर  सेन के घर लौट आया।

उसने पूछा कि तुम्हारे घर इतनी सुबह कौन आया था। लेकिन किसी से इस बारे में कोई जवाब नहीं आया। । अंत में सेन के घर के सामने नदी में पीतल के बर्तन, गिलास और मसाले मिले। सेन परिवार का मानना है कि देवी दुर्गा स्वयं यहाँ आईं और इनसे गुजरीं। और तभी से मां दुर्गा की पूजा शुरू हो गई। हालांकि सबसे पहले पूजा की शुरुआत घट पूजा से हुई। कई साल बाद, मूर्तियों की पूजा शुरू हुई। नदी के किनारे मिले पीतल के बर्तन, गिलास और मसाले, जो करीब 400 साल पुराने हैं, आज भी सेन के घर में बरकरार हैं. सेन परिवार के एक सदस्य प्रलयपति दासगुप्ता ने कहा कि कई साल पहले नौवीं के दिन यहां भैंसों की बलि दी जाती थी। सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन होता था। पर अब यह सब नहीं होता है।