पश्चिम बंगाल में डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मियों पर चोरी-छिपे कोवीशिल्ड की तीसरी डोज लेने का मामला सामने आया है, हालांकि तीसरी डोज लेने का सरकारी नियम नहीं है, लेकिन ये गैर-कानूनी टीके लगवा ले रहे हैं। तीसरी खुराक लेने से पहले वे अपनी एंटीबॉडी की जांच कराते हैं और उनका कहना है कि प्रतिरोधक क्षमता कम गई है। इस कारण वे लोग तीसरी डोज लगवा रहे हैं, हालांकि तीसरा टीका लेने का डाटा अधिकृत रूप से वेबसाइट पर दर्ज नहीं होता है, लेकिन वे किसी ने किसी रूप से जुगाड़ कर वैक्सीन लगवा रहे हैं।
तकरीबन सभी अस्पतालों में कुछ वैक्सीन बर्बाद होती है। वैक्सीन के एक वायल से 10 लोगों को टीका लगता है, लेकिन हर वायल में 10 फीसदी डोज अधिक होती है। यानी 11 डोज होती है। स्वास्थ्यकर्मी इस अतिरिक्त डोज को बर्बाद बता देते हैं और उसका इस्तेमाल खुद कर लेते हैं। सर्विस डॉक्टर फोरम के डॉ सपन विश्वास कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में कोरोना से अब तक 1500 से अधिक चिकित्सकों की मौत हो चुकी है। हाल ही में वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके पैथोलॉजिस्ट डॉ देवजीत चटर्जी की मौत हुई है। इसलिए अब सरकार स्वास्थ्यकर्मियों को बूस्टर डोज लगाने पर विचार करे।
सूत्रों के अनुसार, राज्य में 100 से अधिक स्वास्थ्यकर्मियों ने तीसरी डोज ले ली है लेकिन, इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। यह भी प्रमाणित नहीं हुआ है कि तीसरी डोज सुरक्षित है या नहीं। आइसीएमआर ने अभी दो डोज की ही मंजूरी दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि सिर्फ एंटीबॉडी की जांच कराकर तीसरी डोज लेना खतरनाक हो सकता है। कभी-कभी एंटीबॉडी न भी बनी हो, तो टीके की दो डोज ले चुके लोगों के शरीर में कोरोना से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता आ जाती है।