जब भी किसी के घर में पहला बच्चा पैदा होता है, घर में जश्न का माहौल रहता है लेकिन नेहा के घर में मातम पसरा है. लोग बधाई नहीं, बल्कि दबे मुंह से ताना मारते हैं. उन्हें एक नया नाम भी मिल गया है, बिन ब्याही मां. नेहा, यूपी के हरदोई ज़िले में कछौना थाना के अंतर्गत आने वाले एक गांव की रहने वाली हैं. नेहा के अनुसार, नवंबर 2020 की एक दोपहर को वो घर में अकेली थीं, तभी पड़ोस के गांव (टिकारी) का एक लड़का (मुख्य अभियुक्त) उन्हें ज़बरदस्ती खींच कर ले गया और ग़लत काम (बलात्कार) किया. ये बात उन्होंने अपनी माँ को भी बताई थी. नेहा का एक कमरे का घर खेत में बना हुआ है, जो गाँव से कुछ दूरी पर है. मिट्टी की जर्जर पड़ी दीवारें, अधूरा बना शौचालय, तिरपाल में कई जगह छेद, गृहस्थी के नाम पर गिनती के कुछ बर्तन हैं. नेहा के घरवालों के अनुसार मुख्य अभियुक्त ने पहली घटना के क़रीब डेढ़-दो महीने बाद अपने एक दोस्त के साथ मिलकर कथित तौर पर उनका गैंगरेप किया. दोनों अभियुक्तों के घरवाले इन आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहते हैं कि उन्हें फँसाया गया है.
अलग-अलग नामों से बुलाते हैं लोग
नेहा के पिता और दोनों भाई दिहाड़ी मज़दूरी करते हैं. ज़मीन के नाम पर आठ बिसुआ खेत है, चार भाई-बहनों में नेहा सबसे छोटी हैं. परिवार में कोई पढ़ा-लिखा नहीं है. नेहा के गांव के लोग उन्हें अलग-अलग नामों से बुलाते हैं, ताने मारते हैं, मज़ाक़ उड़ाते हैं.
“लोग कहते हैं मेरा उससे (मुख्य अभियुक्त) चक्कर चलता था. मैं तो उसे ठीक से जानती भी नहीं, उसने मेरे साथ दो बार ग़लत काम (बलात्कार) किया. अभी मैं एक बच्ची की बिन ब्याही माँ हूँ. सब यही कहते हैं तुमने तो ग़ज़ब कर दिया पर मुझे ख़ुद नहीं पता इसमें मेरी ग़लती कहाँ है?”
ये बताते हुए नेहा देर तक रोती रहीं. नेहा सिसकियाँ लेते हुए बता रही थीं, “जब मुझे पता चला कि मेरे पेट में बच्चा है तबसे मैं सिर्फ़ केस की कार्रवाई के लिए ही बाहर निकलती हूँ. सब मुझे बुरी नज़रों से घूरते हैं. इतने ताने सुने हैं आपको क्या-क्या बताऊं?”
यूपी में नाबालिग़ पीड़िता का रेप के बाद माँ बनना ये कोई पहला मामला नहीं है. इससे पहले भी यहाँ कई लड़कियाँ इसका शिकार हो चुकी हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार औरतों के साथ होने वाली हिंसा में 7.3 फ़ीसद का इज़ाफ़ा हुआ है. वहीं दलितों के साथ होने वाली हिंसा में भी इतनी ही बढ़त दर्ज हुई है.
बलात्कार की रिपोर्ट
एनसीआरबी द्वारा 2019 में जारी आंकड़ों के अनुसार देश में लगभग 3500 दलित महिलाओं के साथ बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कराई गई है. यानी हर रोज़ क़रीब 10 महिलाओं के साथ रेप या गैंगरेप जैसी घटना होती है.
ये वो मामले हैं जो रिपोर्ट हुए हैं, जो मामले पुलिस तक पहुँच नहीं पाए उनका कोई लेखा-जोखा नहीं है. इनमें से एक तिहाई मामले उत्तर प्रदेश और राजस्थान से हैं. नेहा के गाँव में लगभग 500 घर हैं जो सभी दलित समुदाय के हैं.
दोनों अभियुक्त पीड़िता के गाँव से ढाई किलोमीटर की दूरी पर दूसरे गाँव से हैं. मुख्य अभियुक्त सवर्ण और दूसरा अभियुक्त दलित समुदाय से ही है. दोनों अभियुक्त फ़िलहाल जेल में बंद हैं.
नेहा के घरवाले कहते हैं कि 31 दिसंबर 2020 को शाम आठ बजे जब नेहा खेत में शौच के लिए गई थीं, मुख्य अभियुक्त (रामसुचित त्रिपाठी) और उनके दोस्त (पुष्पेंद्र वर्मा) लड़की के मुंह पर कपड़ा बांधकर उनको जबरन उठा ले गए.
दोनों ने कथित तौर पर जंगल में जाकर रेप किया और फिर वहीं छोड़ दिया. उनके चीख़ने चिल्लाने पर कुछ लोग रात को उसे घर छोड़ गए. घटना के समय मां मायके और दोनों भाई कमाने बाहर गए थे.
दो महीने का गर्भ
नेहा की माँ के अनुसार पुलिस के बड़े अफ़सर (एसपी) के आदेश पर दो दिन बाद रिपोर्ट लिखी गई. जबकि एक महीने बाद दोनों अभियुक्तों को गिरफ़्तार किया गया. नेहा की मेडिकल रिपोर्ट में यह पता चला कि वो दो महीने की गर्भवती हैं.
16 साल की नेहा शरीर से कमज़ोर हैं, पिछले एक साल से वो जिस मनोदशा से गुज़री हैं, उससे उनकी हालत और बदतर लगती है. दिन में वो कई बार रोती हैं, गुमसुम सी चुपचाप बैठी रहती हैं.
बच्चे के जन्म के बाद मां को ज़्यादा पोषण की ज़रूरत होती है, कई दवाएं, टीकों की ज़रूरत होती है लेकिन नेहा और उनके बच्चे को वो नहीं मिल पा रहा. इस घर में इतनी ग़रीबी है कि नेहा की मां 10 दिन पहले आधे किलो अरहर की दाल ख़रीद कर लाई थीं ताकि नेहा को बनाकर खिला सकें, जब मज़दूरी नहीं मिलती तब इस परिवार को रूखा-सूखा ही खाना पड़ता है.
नेहा की मां पैरों में पहने चांदी की पायल की तरफ़ इशारा करते हुए कह रही थीं, “ये बेचकर इसके लिए कुछ ताक़त की चीज़ खाने के लिए लाएंगे, इसके दूध नहीं निकल रहा है, इसलिए बच्ची को पाउडर वाला दूध पिला रहे हैं.”
समझौता करने का दबाव
राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. सुचिता चतुर्वेदी इस मामले में कहती हैं, “मुझे आपके द्वारा इस मामले के बारे में पता चला है. मैं पूरी कोशिश करूंगी कि परिवार को वो हर एक सरकारी योजना का लाभ मिले जिसकी वो हक़दार है. पीड़िता की सहमति से जन्मी बच्ची को हम शिशु गृह में रखवायेंगे.”
नियमानुसार पारिवारिक लाभ योजना के तहत पीड़िता की माँ को 30,000 रुपये मिलने चाहिए.
पहली बार घटना (रेप) होने पर आपने रिपोर्ट क्यों नहीं दर्ज कराई? इस सवाल के जवाब में नेहा की मां ने कहा, “बिटिया ने मुझे तुरंत बताया था, लेकिन मैं थाने इसलिए नहीं गयी क्योंकि वो लड़का पुलिस के लिए मुख़बरी करता था, ऊंची जाति का है. मुझे लगा हम उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाएंगे, बेइज़्ज़ती हमारी बिटिया की ही होती तभी बात को दबा दिया. जब उसने दोबारा अपने दोस्त के साथ मिलकर फिर वही काम किया तब थाने में एफ़आईआर लिखवाई.”
नेहा की माँ ने आगे बताया, “थाने में जब एफ़आईआर नहीं लिखी गयी तब एसपी साहब से कहा. तब दो दिन बाद लिखी गयी. हमारे ऊपर समझौता करने का बहुत दबाव है, पर हम समझौता नहीं करेंगे.”
गर्भपात की अनुमति नहीं मिली
दो जनवरी, 2021 को दर्ज रिपोर्ट में आईपीसी की धारा 354 और 452 धराएं लगाई थीं. बाद में इसमें गैंगरेप, पॉक्सो और अनुसूचित जाति की धाराएं बढ़ाई गईं.
देश में दलित समुदाय के साथ काम करने वाले एक संगठन ‘दलित वुमेन फ़ाइट’ की सदस्य शोभना स्मृति कहती हैं, “थाने में कोई कार्रवाई नहीं होगी इस डर से दलित समुदाय के ज़्यादातर मामले थाने तक नहीं पहुँच पाते. प्रशासन की लचर व्यवस्था समाज के ताने और लोकलाज के भय से बहुतेरे मामले दबा दिए जाते हैं. अगर इस मामले में प्रशासन सक्रिय होता तो पीड़िता के परिजनों की सहमति से शुरुआत में ही गर्भपात कराया जा सकता था.”
जनवरी 2020 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 में गर्भपात कराने के लिए अधिकतम सीमा 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह (पाँच महीने) करने की अनुमति दे दी थी. बावजूद इसके नेहा का गर्भपात नहीं हो पाया.
नेहा की माँ ने बताया, “जैसे ही मुझे पता चला कि मेरी बेटी गर्भवती है हमने तुरंत कोशिश की कि इसका गर्भपात करा दूँ. कोर्ट में लिखकर भी दिया पर गर्भपात की अनुमति नहीं मिली.”
पुलिस पर आरोप
नेहा के पिता ख़ुद को कोसते हैं, “मेहनत मज़दूरी करके परिवार का भरण-पोषण करना ही मुश्किल है. जब से ये केस हुआ है तब से बहुत पैसा ख़र्च हो रहा है, जहाँ भी जाते हैं बिना पैसे के काम नहीं होता है. दो तीन बकरी-बकरा थे सब बिक गये.”
हालांकि उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार की ओर से नेहा के परिवार को कुछ मुआवज़ा मिला है.
इस केस में पुलिस पर लापरवाही के आरोप भी लगे हैं.
वकील रेनू मिश्रा कहती हैं, “इस केस में कई जगह लापरवाही हुई है. पुनर्वास के लिए मिलने वाली राहत राशि एफ़आईआर के बाद तत्काल प्रभाव से मिल जानी चाहिए जिसमें देरी हुई. इस केस में चाइल्ड वेलफ़ेयर कमेटी की ज़िम्मेदारी बनती है कि वो नाबालिग़ बच्ची को लगातार काउंसलिंग करती जो कि नहीं की गयी.”
रेनू मिश्रा आगे कहती हैं, “अगर समय से कोर्ट का ऑर्डर मिल जाता और सभी क़ानूनी कार्रवाई पूरी हो जाती तो पीड़िता का आसानी से गर्भपात हो सकता था. ये घोर लापरवाही का मामला है. इस केस को पुलिस को बहुत गंभीरता से लेना चाहिए जो नहीं लिया गया.”