असम में 23 सितंबर को ‘अवैध अतिक्रमण’ हटाने गए प्रशासन की अतिक्रमणकारियों के साथ हुई झड़प में दो लोग मारे गए थे और क़रीब आठ पुलिसकर्मी घायल हो गए थे. यह घटना दरंग ज़िले के तीन नंबर धौलपुर गांव में हुई थी.
राज्य सरकार ने इस मामले की जांच के आदेश दिए हैं. असम सरकार के गृह विभाग ने कहा गया है कि गुवाहाटी हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज के नेतृत्व में जांच कराई जाएगी. जांच में घटनाओं की परिस्थितियों का पता लगाया जाएगा.
घटना वाले दिन ज़िला प्रशासन के अधिकारी पुलिस के साथ सरकारी ज़मीन से अतिक्रमणक हटाने के लिए गए थे जिसे लेकर वहां झड़प हो गई.
इस दौरान पुलिस ने कथित तौर पर फ़ायरिंग की जिसमें मोइनुल हक़ और शेख़ फ़रीद नाम के दो लोगों की मौत हो गई. इसे लेकर पुलिस पर सवाल उठाए जा रहे हैं. लेकिन पुलिस का कहना है कि इलाक़े के लोगों ने बेदखली अभियान के विरोध में पथराव शुरू कर दिया, वो हिंसक हो गए और पुलिस को अपने बचाव में फ़ायरिंग करनी पड़ी.
दरंग की घटना से जुड़ा एक कथित वीडियो भी सामने आया था जिसमें एक फ़ोटोग्राफ़र बिजॉय शंकर बानिया गोली से घायल एक व्यक्ति को पीट रहा था. उस फ़ोटोग्राफ़र को भी गिरफ़्तार कर लिया गया है.
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने दरांग में हुई घटना के लिए पॉपुलर फ़्रंट ऑफ़ इंडिया नाम के संगठन को ज़िम्मेदार ठहराया है.
मुख्यमंत्री ने कहा, ”राज्य सरकार के पास स्पष्ट ख़ुफिया सूचना है कि ग़रीब और भूमिहीन परिवारों से कुछ लोगों ने पिछले तीन महीनों में ये कहकर 28 लाख रुपये इकट्ठा किए थे कि वो सरकार से बात करके बेदखली अभियान रोक देंगे. उन लोगों ने वहां के लोगों को भड़काया.”
”इससे पहले पीएफ़आई ने ख़ाना बांटने के बहाने इलाक़े का दौरा किया था. सिर्फ़ 60 परिवारों को वहां से हटाना था 10 हज़ार परिवार कहां से आ गए. वहां से हटाए गए लोगों के पास अगर ज़मीन नहीं है तो हम उन्हें दो एकड़ ज़मीन देंगे. लेकिन, इनमें से अधिकतर लोगों के पास ज़मीन है, ये भूमिहीन नहीं हैं.”
मुख्यमंत्री ने कहा कि अतिक्रमणकारियों को हटाने का अभियान रोका नहीं जाएगा
पुलिस की कार्रवाई पर सवाल
इसे लेकर दो तरह की बातें सामने आई हैं. पुलिस उस दिन का अलग घटनाक्रम बताती है और इलाक़े के लोगों कुछ और कहते हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस का कहना है, “जब पुलिस ज़ोन 3 धौलपुर में पहुंची तो क़रीब 2,000 से 2,500 लोगों की भीड़ उनके सामने खड़ी थी. वो सरकार विरोधी नारे लगा रहे थे और युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई थी.”
न्यायाधीश पल्लबी कचारी ने विरोध प्रदर्शनकारियों को शांत करने की बहुत कोशिश की, लेकिन वो और हिंसक हो गए. इन स्थितियों की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी गई तो कुछ देर बाद दरांग के एसीपी और डिप्टी एसपी अतिरिक्त सुरक्षा बलों के साथ वहां पहुंचे. प्रदर्शनकारियों को बहुत समझाने की कोशिश की गई और पुनर्वास का वादा किया गया, लेकिन वो नहीं माने.
प्रदर्शनकारी यहीं नहीं रुके उन्होंने पुलिसकर्मियों और न्यायाधीश पर हमला शुरू कर दिया. जिसके बाद पुलिस ने आंसू गैस के गोले और रबर बुलेट का इस्तेमाल किया. तब भी मामला ना संभलने पर पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा. लेकिन, जब प्रदर्शनकारियों ने धारदार हथियारों से पुलिस पर हमला करना शुरू किया तो उन्हें फ़ायरिंग करनी पड़ी. प्रदर्शनकारियों के हमले में कई पुलिसकर्मी ज़ख्मी भी हुए हैं.
रिपोर्ट के अनुसार पुलिस का ये भी कहना है कि एक बार लोग समझाने पर जगह खाली करने के लिए मान भी गए थे, लेकिन सैकड़ों लोगों की भीड़ लाठी और पत्थर लेकर वहां पहुंच गई. पुलिस ने कुछ सगंठनों पर लोगों को भड़काने का आरोप लगाया है.
चश्मदीदों ने बताया अलग घटनाक्रम
हालांकि, इलाक़े के चश्मदीदों ने रिपोर्ट में बिल्कुल अलग घटनाक्रम बताया है. उनका कहना है कि लोग जगह खाली करने को तैयार हो गए थे फिर भी पुलिस ने तोड़फोड़ और हिंसा शुरू कर दी.
अधिकतर लोगों ने कहा कि उन्हें घर खाली करने के लिए 24 घंटों का समय भी नहीं दिया गया.
रिपोर्ट के मुताबिक 21,470 बीघा ज़मीन पर अतिक्रमण हटाने का अभियान 18 सिंतबर से चल रहा था. ये इलाक़ा ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे पर है और यहां तक पहुंचने के लिए ठीक से कोई सड़क भी नहीं है.
यहां के लोग अपनी जीविका के लिए खेती पर निर्भर हैं और फ़सल को आसपास के इलाक़ों में बेचते हैं.
यहां चल रहा बेदखली अभियान असम सरकार की गारुखुटी परियोजना का हिस्सा है. इस परियोजना में अवैध क़ब्ज़ों को हटाकर असम के मूल लोगों के लिए कृषि और अन्य संबंधित गतिविधियां शुरू करने और युवाओं के लिए रोज़गार पैदा किया करने की योजना है.
इलाक़े के लोगों का कहना है, “लोगों ने इलाक़ा खाली कराने के विरोध में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया और पुलिस से बातचीत की. लेकिन, कोई बात ना बनने पर उनके पास अपना घर खाली करने के सिवा और कोई रास्ता नहीं था. जब वो अपने टीन और लकड़ी के डंडों से बने घर तोड़ रहे थे तब पुलिस ने उन पर बुल्डोज़र चलाना शुरू कर दिया. इसके बाद लोगों ने भी पुलिस कार्रवाई का जवाब दिया.”
मोइनुल की पत्नी मुमताज बेगम बताती हैं, “गांव के कुछ लोग पुलिस से बात कर रहे थे, लेकिन तभी पुलिस ने लोगों पर हमला कर दिया. उनके देवर पर भी हमला किया गया. चार-पांच पुलिसकर्मी उनके घर में घुस आए और सभी को बाहर धक्का देना शुरू कर दिया. इस पिटाई में मोइनुल की भांजी का हाथ भी टूट किया जिससे गुस्साए मोइनुल डंडा लेकर पुलिसकर्मियों के पीछे भागे.”
सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में मोइनुल डंडा लेकर भागते दिख रहे हैं जिसके बाद पुलिस ने उन पर गोली चला दी.
इस घटना में शेख़ फ़रीद नाम के एक 12 साल के लड़के की भी मौत हुई है. उसे धौलपुर 2 में गोली लगी थी.
लड़के के भाई आमिर हुसैन ने बताया, “शेख़ फ़रीद डाक खाने से अपना आधार कार्ड लेने गया था. वहां से वापस आने का एक ही रास्ता था और उसे हिंसा वाले इलाक़े से होकर जाना था. लेकिन, रास्ते में ही उसे पुलिस की गोली लग गई. जब पिता को इसकी जानकारी मिली तो वो हैरान थे क्योंकि उसका हिंसा से कोई संबंध ही नहीं था.
सवाल ये पूछा गया है कि ज़मीन पर अतिक्रमण हटाने के लिए क़ानून का उल्लंघन क्यों किया गया. सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े इसे विरोध दबाने की हिंसक कार्रवाई कहते हैं.
संजय हेगड़े ने कहा, ”लोगों को उचित नोटिस नहीं मिलना क़ानून का उल्लंघन है. इसके बाद क़ानून का उल्लंघन तब हुआ जब पुलिस वहां अनुपात से ज़्यादा संख्या में गई और ज़रूरत से ज़्यादा बल का इस्तेमाल किया. क़ानून में अपने बचाव का अधिकार है चाहे संपत्ति हो या जीवन. मोइनुल उस वक़्त अपनी संपत्ति का बचाव कर रहा था. जब वो लाठी से हमला करने आ रहा था तो उसके ख़िलाफ़ गोलियों का इस्तेमाल बचाव के अधिकार से कहीं ज़्यादा है.”
”जब वो फ़ोटोग्राफर गोली लगे व्यक्ति पर कूदा तो उसने उसकी जान बचने की हर संभावना को ख़त्म कर दिया. इसे क़ानूनी भाषा में हत्या कहा जाता है. हर मामला दिखाता है कि सरकार विरोध दबाने के लिए अत्यधिक हिंसा का तरीक़ा अपना रही है.”
अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने की कोशिश
रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि राज्य में चल रहा अतिक्रमण हटाओ अभियान सिर्फ़ अतिक्रमण तक सीमित नहीं है, इसके राजनीतिक मायने भी हैं. अतिक्रमण के बहाने हिमंत बिस्व सरमा के नेतृत्व वाली सरकार राज्य के अल्पसंख्यक मुसलमानों को निशाना बना रही है.
असम में बांग्लादेशी मुसलमानों और राज्य के मूल नागरिकों के बीच टकराव का मसला लंबे समय से बना हुआ है.
रिपोर्ट कहती है, ”यहां के मुसलमानों को अतिक्रमणकारी या अवैध प्रवासी के नज़रिए से देखा जाता है. इन पर यहां के मूल लोगों की ज़मीन और रोज़गार छीनने के आरोप लगाए जाते हैं.”
”इसी नज़रिए के तहत राज्य में राष्ट्रीय नागरिकता पंजीकरण (एनआरसी) लाया गया और मुसलमानों को बाहरी साबित करने की कोशिश की गई. लेकिन, एनआरसी में बड़ी संख्या में मुसलमानों के नाम दर्ज हैं. उन्होंने नागरिकता के दस्तावेज़ पेश किए हैं. एनआरसी से बात ना बनने पर अतिक्रमण हटाने का तरीक़ा अपनाया गया.”
लेखिका फ़राह नक़वी ने इसे विकास नहीं बल्कि नफ़रत की कार्रवाई बताया. उन्होंने कहा, “ये सिर्फ़ कुछ लोगों के अतिक्रमण का मामला नहीं है. अतिक्रमण अलग चीज़ होती है लेकिन इसमें जो घृणा है वो बिजॉय बानिया के तरीक़े से देखी जा सकती है.”
“जब बांग्लादेशी और घुसपैठिया सब विफल हो गया और बहुत से मुसलमानों का नाम एनआरसी में आ गया तो अतिक्रमण का नया तरीक़ा अपनाया जा रहा है. सांप्रदायिक राजनीति अपने ही नागरिकों को किस तरह के नाम दे रही है.”
हालांकि, सरकार ऐसे किसी भी आरोप से इनकार करती रही है. एनआरसी के दौरान केंद्र सरकार का कहना था कि इसका भारतीय मुसलमान पर कोई असर नहीं पड़ेगा. ये बांग्लादेश से अवैध तरीक़े से भारत में आए लोगों की पहचान के लिए है.
अतिक्रमण हटाने के लिए चल रहे अभियान को भी राज्य सरकार ने राज्य के विकास के लिए ज़रूरी बताया है. इससे खाली होने वाली ज़मीन का इस्तेमाल कृषि के ज़रिए रोजगार पैदा करने के लिए किया जाएगा.