दुनिया की प्रमुख हेल्थकेयर कंपनी एबॅट, मेनोपॉज़ से जुड़े अभियान नेक्स्ट चैप्टर को अगले स्तर पर लेकर जा रही है। इस विषय को लेकर लोगों की चुप्पी तोड़ने के लिए कई तरीके अपनाए गए हैं। इस साल मेनोपॉज़ को लेकर सार्थक चर्चा को बढ़ावा देने के लिए एबॅट ने बातचीत का एक सरल, रोचक तरीका ‘रियल, मेड अप ऑर माइन?’ पेश किया है। इसका आयोजन मुंबई में आयोजित एक कार्यक्रम में किया गया। पूर्व मिस यूनिवर्स, अभिनेत्री, उद्यमी लारा दत्ता इस चर्चा में शामिल हुईं। पिछले साल इस अभियान के लॉन्च का हिस्सा रहीं, लारा दत्ता ने इस मुद्दे पर खुली चर्चा करने की वकालत की थी।यह कार्यक्रम एबॅट के 2022 में लॉन्च हुई कहानियों के कलेक्शन द नेक्स्ट चैप्टर पर आधारित है। यह भारत, चीन, ब्राजील और मैक्सिको में मेनोपॉज़ के दौर से गुजर रही महिलाओं के वास्तविक अनुभव की कहानियों का संकलन है। हॉर्मोनल बदलावों का रिश्तों और कॅरियर के साथ-साथ सेहत तथा आत्मविश्वास पर पड़ने वाले प्रभावों तक, हर महिला की कहानी ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को अपने अनुभव साझा करने के लिए प्रेरित करती हैं। ये कहानियां उन्हें मेनोपॉज़ के बारे में ज्यादा खुलकर बात करने और परिवार तथा दोस्तों सहित अन्य लोगों से मदद मांगने की प्रेरणा देती हैं।
डॉ. रोहिता शेट्टी, हेड, मेडिकल मामले, एबॅट का कहना है, “मेनोपॉज़ के दौरान महिलाओं को मुश्किल बदलाव से होकर गुजरना पड़ता है, जिसकी पहचान करके उनकी मदद करना महत्वपूर्ण है। साथ ही उनके आस-पास के लोगों को यह समझना जरूरी है कि इस चरण में उनकी कैसे मदद करनी है। हमारा मानना है कि मेनोपॉज़ के बारे में चर्चा शुरू करना और विश्वसनीय जानकारी देना महिलाओं की मदद की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे उन्हें इस चरण में ज्यादा बेहतर जिंदगी जीने में मदद मिल सकती है।’’ लारा दत्ता कहती हैं, “साहसी महिलाओं के परिवार में मेरी परवरिश हुई हैं, जहां समस्याओं और मुश्किल विषयों के बारे में खुलकर चर्चा होती रही है, ताकि उनका हल निकाला जा सके। एबॅट के द नेक्स्ट चैप्टर अभियान के साथ मुझे पूरा विश्वास है कि सिर्फ महिलाएं ही नहीं, बल्कि उनके दोस्त और परिवार वाले भी मेनोपॉज़ के बारे में सहज होकर बात करेंगे। इस बातचीत से महिलाओं को अपने स्वास्थ्य की जिम्मेदारी लेने के लिए आवश्यक प्रमुख जानकारी और आत्मविश्वास प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी।”
लारा दत्ता, डॉ. नोज़र शेरियार, सलाहकार प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ, पी.डी. हिंदुजा एंड ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल्स और द फेडरेशन ऑफ ऑब्स्टेट्रिक एंड गायनेकोलॉजिकल सोसाइटीज ऑफ इंडिया (FOGSI) की पूर्व महासचिव, डॉ. सुचित्रा पंडित, सूर्या ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स, मुंबई में सलाहकार प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ और द फेडरेशन ऑफ ऑब्स्टेट्रिक एंड गायनेकोलॉजिकल सोसाइटीज ऑफ इंडिया (एफओजीएसआइ) की पूर्व अध्यक्ष और एबॅट इंडिया में चिकित्सा मामलों की प्रमुख डॉ. रोहिता शेट्टी समेत पैनल सदस्यों ने मेनोपॉज़ से जुड़े अनुभव, लोगों के बीच जागरूकता के स्तर और सामाजिक समर्थन के महत्व पर चर्चा का नेतृत्व किया। इस सत्र का संचालन, शी द पीपुल की फाउंडर शैली चोपड़ा ने किया। आमतौर पर भारतीय महिलाओं को लगभग 46 साल की उम्र में मेनोपॉज़ की समस्या होती है, जोकि पश्चिमी देशों की तुलना में कम से कम पांच साल पहले है। मेनोपॉज़ का प्रभाव उनके परिवारों और सामाजिक जीवन, कार्यस्थल, हर दिन की गतिविधियों पर पड़ता है। एबॅट और आईपीएसओएस के सर्वे में पाया गया कि 80%से भी ज्यादा महिलाएं मानती हैं कि मेनोपॉज़ उनके व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। मेनोपॉज़ से महिलाओं की मानसिक सेहत पर भी असर पड़ सकता है। उनमें डिप्रेशन और एंजाइटी जैसी समस्याओं से लेकर चिड़चिड़ापन, एकाग्रता में कमी, नींद ना आना और याददाश्त से जुड़ी समस्याएं शामिल हैं।