वरिष्ठ पत्रकार राजीव कटारा नहीं रहे…कोविड ने छीन लिया एक और मुस्कराता चेहरा

96

वरिष्ठ पत्रकार राजीव कटारा नहीं रहे. उनके निधन का समाचार मिलते ही मीडिया, अध्यात्म व साहित्य जगत स्तब्ध रह गया. सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लग गया. कटारा की आकस्मिक मृत्य कोरोना से हुई. दीवाली के बाद उन्हें राजधानी के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

पारिवारिक सूत्रों के मुताबिक उन्हें प्लाज्मा भी डोनेट किया गया और आखिरी दिनों में वेंटिलेटर पर भी रखा गया, पर उन्हें बचाया नहीं जा सका. चौथी दुनिया अखबार से पत्रकारिता शुरू करने वाले कटारा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. बेहद कम समय के लिए ही सही वह आज तक की शुरुआती टीम का हिस्सा भी थे.

उन्होंने संडे ऑब्जर्बर, कुबेर टाइम्स, अमर उजाला, दैनिक ज़ागरण, दैनिक भास्कर और राष्ट्रीय सहारा में काम किया. हिंदी अकादमी जब पत्रकारिता का पाठ्यक्रम करा रही थी, तो वह वहां अतिथि अध्यापक भी थे. उनकी आखिरी पारी हिंदुस्तान टाइम्स के साथ थी. वह इस समूह की साहित्यिक-पारिवारिक पत्रिका कादंबिनी के कोरोना काल में बंद होने के दिन तक प्रभारी संपादक थे.

खेल, सियासत, व्यावसाय जैसे विषयों पर उनकी अद्भुत पकड़ थी. खेल से जुड़ा उनका इनस्विंग कॉलम लोगों को बहुत पसंद था. शालीनता, सहृदयता, उदारता, गंभीरता और हरेक की मदद के अपने व्यावहार की वजह से वह हर दिल के करीब थे. कटारा का मन रमता था कला, अध्यात्म व साहित्य में. कृष्ण, बुद्ध, कबीर, मीरा, रैदास, रसखान, निजामुद्दीन औलिया से लेकर गांधी और ओशो तक का उनका अध्ययन चौंका देने वाला था.

भारतीय संस्कृति और परंपरा पर उनकी गहरी समझ का लोहा सभी मानते थे. हिंदी पत्रकारिता में विषय और कला आधारित प्रयोग, बड़ी हस्तियों के स्तंभ आदि के प्रयोग के लिए उन्हें जाना जाता है. राजधानी की हिंदी पत्रकारिता का एक बड़ा तबका या तो उनके संपर्क में था या उनको पढ़कर, उनसे सीखकर आगे बढ़ा. यही वजह है कि उनके आकस्मिक निधन को कोरोना काल में पत्रकारिता व साहित्य के लिए एक बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा है. पत्रकारिता के क्षेत्र में अहम योगदान के देने लिए कटारा राष्‍ट्रपति द्वारा गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान से भी सम्मानित थे.