मिठाई का राजा कहे जाने वाले माखन भोग ने अपना 20वा वर्षगांठ बनाया

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सिलीगुड़ी में वर्ष 2003 में स्थापित माखन भोग सिलीगुड़ी में मिठाई की दुकानों की श्रेणी में एक शीर्ष खिलाड़ी है। इसी को लेकर माखन भोग ने आज सिलीगुड़ी के वेगा सर्कल के सामने अपने माखन भोग शाप में अपना 20वा वर्षगांठ मनाया। प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से मखन भोग के संस्थापक संतोष कुमार गोयल, निर्मल कुमार गोयल, विजय गोयल,और पवन गोयल ने इसकी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि माखन भोग की शुरुआत 2003 में 17अप्रैल को अपोलो टावर मे पहले आउटलेट के रूप मे हुआ था। उन्होंने बताया कि हमारा कोई भी फ्रेंचाइजी नहीं है सभी अपने ऑन व्यवसाय है। माखन भोग अपनी शुद्धता और अपने बेस्ट क्वालिटी के रूप में जाना जाता है। उन्होंने कहा कि हमारे मिष्ठान व्यवसाय मे बेकरी को आगे बढ़ाने के लिए एक नया मशीन को लांच किया गया है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां पर सभी प्रकार की मिठाईयां एवं नमकीन शुद्ध शाकाहारी है।यह प्रसिद्ध प्रतिष्ठान सिलीगुड़ी के स्थानीय और अन्य हिस्सों के ग्राहकों को वन-स्टॉप डेस्टिनेशन के रूप में सेवा प्रदान करता है। अपनी यात्रा के दौरान, इस व्यवसाय ने अपने उद्योग में एक मजबूत मुकाम स्थापित किया है। यह विश्वास कि ग्राहकों की संतुष्टि उनके उत्पादों और सेवाओं जितनी ही महत्वपूर्ण है, ने इस प्रतिष्ठान को ग्राहकों का एक बड़ा आधार तैयार करने में मदद की है, जो दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। यह व्यवसाय ऐसे व्यक्तियों को नियुक्त करता है जो अपनी संबंधित भूमिकाओं के प्रति समर्पित हैं और कंपनी के सामान्य दृष्टिकोण और बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बहुत प्रयास करते हैं। निकट भविष्य में, इस व्यवसाय का उद्देश्य अपने उत्पादों और सेवाओं की श्रृंखला का विस्तार करना और एक बड़े ग्राहक आधार को पूरा करना है। सिलीगुड़ी में, यह प्रतिष्ठान सिलीगुड़ी मुख्यालय में एक प्रमुख स्थान पर है।सिलीगुड़ी माखन भोग के प्रीमियर और प्रतिष्ठित मिठाई की दुकान का विस्तार हो रहा है। अपनी नई विस्तार रणनीति के तहत आज माखन भोग, एसएफ रोड, सिटी सेंटर मॉल, 2nd माइल,मे अपने आउटलेट खोले हैं । सिलीगुड़ी में अब शहर भर में कई मिठाई की दुकानों विशेष रूप से पारंपरिक भारतीय मिठाई की दुकानों की भरमार है। उनमें अग्रणी माखन भोग है। अस्सी के दशक की शुरुआत में और उसके बाद यह शहर अपनी पारंपरिक बंगाली मिठाइयों के लिए प्रसिद्ध था, हालाँकि, बहुसंस्कृतिवाद के प्रवाह के कारण, पारंपरिक बंगाली मिठाइयों का व्यवसाय पीछे छूट गया है।