पश्चिम बंगाल में बीजेपी क्या वाक़ई घेर रही है टीएमसी को

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पश्चिम बंगाल में इन दिनों शायद ही कोई दिन होता है जब बीजेपी की कोई चुनावी रैली या सभा नहीं होती.

केंद्र सरकार के आठ मंत्री हर सप्ताहांत राज्य का दौरा कर रहे हैं. पार्टी के प्रदेश प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने कोलकाता में ही डेरा डाला हुआ है.

पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह लगातार पश्चिम बंगाल जा रहे हैं और चुनावी सभाएँ कर रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी 23 जनवरी को नेताजी की 125वीं जयंती पर कोलकाता पहुँचे थे. और चर्चा है कि मार्च से वो भी राज्य में चुनावी रैलियाँ करने वाले हैं.

और इन सबके बीच लगातार तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के पाला बदलने की भी ख़बर आ रही है, सुर्खियों में ‘पलायन’ और ‘भगदड़’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल हो रहा है.तो क्या सही में पश्चिम बंगाल में बीजेपी पिछले दस वर्ष से सत्ता पर काबिज़ ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को घेर रही है? क्या 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश में अपनी सीटों की संख्या में नौ गुना और मत प्रतिशत में चार गुना इज़ाफ़ा करने वाली बीजेपी प्रदेश में 10 साल से क़ायम ममता बनर्जी के किले को ढहा देगी?

बीजेपी के बड़े नेताओं के दौरे

तृणमूल कांग्रेस के नेता अपनी हर सभा में बीजेपी के बड़े नेताओं पर हमले कर रहे हैं. टीएमसी का कहना है, बीजेपी की ताक़त को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है.

पिछले महीने 10 दिसंबर को कोलकाता में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के दौरे के समय उन पर हमला होने के ख़बर ने ख़ूब सुर्खियां बटोरीं जब उनके काफ़िले पर ईंट से हमला होने की बात कही गई.

सारी मीडिया में इस हमले की चर्चा चल रही थी, लेकिन ममता बनर्जी ने इसे लेकर उल्टे बीजेपी पर ही राजनीतिक तीर साध दिया.

ममता बनर्जी ने इसे ‘नौटंकी’ बताते हुए उसी दिन एक रैली में जेपी नड्डा के नाम का मज़ाक उड़ाते हुए कहा था – “कभी कोई मुख्यमंत्री चला आ रहा है, कभी कोई गृह मंत्री चला आ रहा है, कभी कोई और मंत्री चला आ रहा है, ये लोगों का काम नहीं करते, किसी दिन चड्डा-नड्डा-फड्डा-भड्डा-गड्डा चला आ रहा है.”

पार्टी प्रवक्ता और दमदम सीट से सांसद सौगत राय कहते हैं, “बीजेपी आक्रामक हो रही है क्योंकि दिल्ली से उनके नेता और मंत्री लोग यहाँ आ रहे हैं, मगर बीजेपी का स्थानीय नेतृत्व बहुत कमज़ोर है, इसलिए आप देखेंगे कि अमित शाह आते हैं, नड्डा आते हैं, मोदी भी आएँगे मगर असल में बीजेपी अभी भी तृणमूल से बहुत पीछे है.

मगर मेदिनीपुर सीट से सांसद और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं कि पश्चिम बंगाल सीमावर्ती प्रदेश होने की वजह से देश की सुरक्षा के लिए काफ़ी अहम है. वो कहते हैं, “चूँकि हमारी पार्टी राष्ट्रीय पार्टी है तो हमारे राष्ट्रीय नेता आएँगे ही.”

उन्होंने कहा,”हम किसी भी कीमत पर पश्चिम बंगाल को जीतना चाहते हैं क्योंकि देश के हित के लिए यहाँ की सीमा सुरक्षित होनी चाहिए, क़ानून-व्यवस्था की स्थिति अच्छी होनी चाहिए और वो हम करेंगे.”

प्रदेश में बीजेपी के संगठन के कमज़ोर होने के आरोप को बेबुनियाद बताते हुए वो कहते हैं कि “अगर हमारे कार्यकर्ता इतने क़ाबिल नहीं हैं तो हमें इतने वोट कैसे मिल गए.”

बीजेपी की उम्मीदें

पश्चिम बंगाल में बीजेपी अगर आक्रामक होकर प्रचार कर रही है तो उसकी एक बड़ी वजह है 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को मिली कामयाबी.

2014 के आम चुनाव में मोदी लहर के बावजूद बीजेपी को राज्य में 42 में से केवल दो सीटें मिली थीं, मगर 2019 में उसके सांसदों की संख्या बढ़कर 18 हो गई. बीजेपी का वोट प्रतिशत भी 10 प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया.

लेकिन ये सवाल अहम है कि बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में जो जादू दिखाया, वो क्या विधानसभा चुनाव में भी क़ायम रहेगा?

तृणमूल नेता कहते हैं कि 2019 के चुनाव में परिस्थितियाँ अलग थीं और बालाकोट हमले ने चुनाव अभियान को अलग रूख़ में मोड़ दिया.

सौगत रॉय कहते हैं,” लोकसभा में बीजेपी को कई वजहों से बढ़त मिल गई थी मगर उसके बाद टीएमसी ने काफ़ी काम किया, जो दुरुस्त करना था किया, तो अभी हम मज़बूत स्थिति में हैं, हमें 200 के क़रीब सीट मिल जाएगी.”

बीजेपी दावा करती है कि उनके वोट बढ़ने का सिलसिला 2019 से पहले ही शुरू हो चुका था.

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा, “पश्चिम बंगाल में लोग भूल जाते हैं कि 2018 के पंचायत चुनाव में इतनी हिंसा के बावजूद हम 7,000 सीटें जीते थे, तो उसी समय से पार्टी का आधार बनने लगा और उसका नतीजा दिखा 2019 के लोकसभा चुनाव में.”

बीजेपी पश्चिम बंगाल में सरकार बनाएगी, इसके बारे में तर्क देते हुए वो उत्तर प्रदेश का उदाहरण गिनाते हैं. वो कहते हैं, “यूपी चुनाव में हमने लोकसभा में 70 सीटें जीतीं और प्रदेश में तीन-चौथाई बहुमत से सत्ता में आए.”

2019 में बीजेपी को बालाकोट हमले और मोदी लहर का फ़ायदा मिला, मगर पश्चिम बंगाल में बीजेपी की सीटें बढ़ने की एक और वजह थी, उस चुनाव में उन्हें लेफ़्ट और कांग्रेस के वोटरों का भी समर्थन मिला.

कोलकाता में बीजेपी की राजनीति पर नज़र रखने वाली वरिष्ठ पत्रकार अरुंधति मुखर्जी कहती हैं, “अंतिम चुनाव में ये देखा गया कि सीपीएम के वोटरों और समर्थकों ने बीजेपी को वोट डाला, अगर वो वोट सीपीएम को वापस गए तो उनको बहुत क्षति होगी.”

2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में वामपंथी मोर्चे और कांग्रेस के बीच गठबंधन नहीं हो सका था. मगर 2021 का चुनाव दोनों साथ मिलकर लड़ने की तैयारी कर रहे हैं.

कोलकाता स्थित वरिष्ठ पत्रकार निर्माल्य मुखर्जी कहते हैं, “2019 का लोकसभा चुनाव एक टर्निंग प्वाइंट था, बीजेपी का अपना वोट ज़्यादा नहीं बढ़ा, मगर उन्हें लेफ़्ट के 27 प्रतिशत और कांग्रेस के पाँच प्रतिशत वोट मिल गए, अगर बीजेपी उन मतों को बरक़रार रखती है तो उसे काफ़ी बढ़त मिल जाएगी.”

मगर वरिष्ठ पत्रकार शिखा मुखर्जी को इसमें संदेह लगता है. वो कहती हैं, “बीजेपी कहती है कि उनके पास 40 प्रतिशत वोट है,पर वो पहले तो था नहीं, उनका जो मूल वोट है जिसके आधार पर वो अपनी रणनीति बना सकते हैं, वो हमें अभी भी समझ नहीं आ रहा है.”

सीटों की बाज़ी

पश्चिम बंगाल में विधानसभा की कुल 294 सीटें हैं. 147 मैजिक फ़िगर या जादुई आँकड़ा है यानी इतनी सीटें हासिल करने वाला सरकार बना लेगा.

बीजेपी और तृणमूल दोनों के बीच बाज़ी-सी लग गई है. गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया है कि उनकी पार्टी को 200 से ज़्यादा सीटें मिलेंगी.

वहीं बिना शोर-शराबा किए पार्टियों की चुनावी रणनीतियाँ बनाने वाले तृणमूल कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर चुनौती दी कि अगर बीजेपी दहाई का आँकड़ा पार कर गई तो वो ट्विटर छोड़ देंगे.

इस बाज़ी के बारे में पश्चिम बंगाल में बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, “2016 में तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने 21 सीट जीतने का लक्ष्य रखा था, तब भी लोगों को अजीब लगता था कि इनकी तो केवल दो सीटें हैं, 21 की बात कर रहे हैं, दो ही बचा लें, वही बहुत है. तब हमने नारा दिया था 19 में हाफ़, 21 में साफ़, अब हमारे नेता ने कह दिया है तो हम 200 से आगे ही जाएँगे, पीछे नहीं रहेंगे.”

वहीं राज्य में 34 साल तक सत्ता में रहे वामपंथी दल पिछले चुनावों के आधार पर अनुमान लगाने को सही नहीं मानते.