कोरोना के खौफ ने अपनों से किया दूर,

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कोविड महामारी का खौफ लोगों में इस कदर व्‍याप्‍त है कि उत्‍तर प्रदेश में इसके कारण मरने वाले लोगों की अस्थियां लेने उनके अपने श्‍मशानों में नहीं पहुंचे | ये अस्थियां अभी भी विसर्जन के इंतजार में है | यही नहीं, कोरोना के खौफ के कारण बहुतों को तो ‘अपनों’ का कंधा तक नहीं मिला, स्‍वयंसेवी लोगों ने अंतिम संस्‍कार किया |तमाम लोग श्‍मशान में पहुंचे लेकिन चिता जलते ही घर लौट गए और फूल चुनने लौटे ही नहीं | फिरोजाबाद के स्‍वर्गाश्रम में इसके प्रबंधक आलिंद अग्रवाल भरे हुए दिल से इन अस्थियों के विसर्जन की राह देख रहे हैं | इनमें तमाम अस्थियां कोरोना के पिछले साल के समय की हैं लेकिन कोरोना का खौफ ऐसा है कि जिन मां-बाप ने जन्‍म दिया उनकी अस्थियां लेने भी लोग नहीं गए | अलीगढ़ के नुमाइश ग्राउंड वाले मुक्तिधाम में कोई अपनी मां के फूल चुनने नहीं आया | श्‍मशान के लोग अस्थियां चुन रहे हैं | अंदर ऐसी अस्थियां भरी पड़ी है जिन्‍हें लेने के लिए परिजन नहीं पहुंचे | मानव सेवा संस्‍थान के विष्‍णु कुमार बंटी कहते हैं, ‘बहुत से घर वाले जो आए, उन्‍होंने अंतिम संस्‍कार में अपने परिजनों को हाथ तक नहीं लगाया | मानव सेवा संस्‍था की ओर से उनका अंतिम संस्‍कार किया गया |

समाजसेवी धनीराम पांथेर कहते हैं, ‘लगभग 50 अस्थिकलश रखने की जगह हैं और लगभग 25 अस्थिकलश रखे हुए हैं | इसकी वजह पूछने पर वे कहते हैं-वजह है डर | तमाम धर्मगुरु इससे तकलीफ में हैं, वे कहते हैं कि नदियों में अस्थियों के प्रवाह की परंपरा तोड़ी नहीं जा सकत काशी घाट कानपुर के प्रभु कृपा आश्रम के अरुण चेतन्‍य कहते हैं, ‘नदियों में प्रवाह की परंपरा थी उसका निर्वहन हर स्थिति में करना ही है. जो लोग ऐसा नहीं कर रहे, वे अच्‍छे इंसान नहीं हो सकते.’ चंद रोज पहले एक महिला की अस्‍पताल में कोविड से मौत हुई, उसका पति और बेटा, दोनों शव छोड़कर भाग गए. अस्‍पताल के लोगों को उसका अंतिम संस्‍कार करना पड़ा.