विदेशों में भी कोविड-19 का खूब प्रकोप रहा, खूब स्टेरॉइड का इस्तेमाल हुआ, लेकिन ब्लैक फ़ंगस के मामले हमारे ही देश में इतने ज्यादा क्यों हैं? यह सवाल इस समय ज्यादातर लोगों को मन में उठ रहा है. ब्लैक फंगस या Mucormycosis से महाराष्ट्र में 90 मौतें हो गई हैं. अब फ़ूड एंड ड्रग फ़ाउंडेशन और एक्सपर्ट्स ने सवाल उठाया कि क्या हम दूषित ऑक्सीजन और इसमें डिस्टिल्ड वॉटर की जगह नल के पानी का इस्तेमाल तो नहीं कर रहे, क्योंकि इससे भी ब्लैक फ़ंगस का ख़तरा बढ़ता है. ब्लैक फ़ंगस के कारण 63 साल के किशोर पंजाबी की दायीं आंख निकालनी पड़ी है.वे शुगर पेशेंट हैं और कोविड से ठीक होने के 10 दिन बाद घातक म्युकोरमायकोसिस (Mucormycosis) का शिकार हुए.दो महीने बाद एक आंख गंवा कर ठीक हो पाए.
मशहूर गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट (Gastroenterologist) और जेन मल्टीस्पेशियालिटी हॉस्पिटल के डायरेक्टर डॉ. रॉय पाटनकर कहते हैं, ‘पश्चिमी देशों में जहां बहुत ज़्यादा कोविड था वहां भी इतना ब्लैक फ़ंगस नहीं था. हमारे यहां इसके होने के कई कारण हैं, क़िल्लत के कारण भारत में हम इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन भी इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसमें शायद प्यूरीफिकेशन पर्याप्त नहीं है. हम यहां ह्यूमिडिफ़ायड ऑक्सीजन देते हैं, बोतल में पानी के ज़रिए. शायद ऐसा भी हो क इसमें डिस्टिल्ड की जगह नल का पानी इस्तेमाल हो रहा हो या बॉटल ठीक से स्टेरायल नहीं हो रहे हैं. ENT सर्जन प्रशांत केवले कहते हैं, ‘भारत-महाराष्ट्र में जो स्ट्रेन हम देख रहे हैं वो भी एक फ़ैक्टर है जिससे ब्लैक फ़ंगस को बढ़ावा मिला है लेकिन ऑक्सीजन और डिस्टिल्ड वॉटर भी फ़ैक्टर है.’ ये फंगस हवा, नमी वाली जगह, मिट्टी, सीलन भरे कमरों आदि में पाया जाता है. स्वस्थ लोगों को फ़िक्र की ज़रूरत नहीं लेकिन जिनकी इम्यूनिटी कमजोर है उन्हें ब्लैक फ़ंगस का खतरा है.